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________________ मन्त्रिसमुरेश १६७ auruun. सामाहिये, जिन विरोधियोंका उसने वध-यधनादि मनिष्ट-बुरा किया हो ॥१॥ समय न आने योग्य व्यक्तिः1 अनायुक्तो मंत्रकाले न तिप्टेत् ॥३२॥ ति-कोई भी व्यक्ति राजाकी आझाके बिना मंत्रणाके समय विना बुलाया हुमा अस धान व मारे। अर्थात् जो पुरुष राजाको आज्ञाके अनुसार विचार करने के लिये युलाये गये हों, वे ही यहाँ म्य (मिना बुलाये हुए) व्यक्ति न जावें।। भावार्थ:-राजाका प्रिय व्यक्ति भी यदि मंत्रणा-काल में पहुंच जाता है, वो राजा मंत्रभेदकी शंहासे न होकर उससे रुष्ट (नाराज) हो जाता है ॥३२॥ "विधारने भी कहा है कि जो व्यक्ति राजासी मंत्र-अलामें विना बुलाया हुभा पला आता है वह होने पर भी राजाका कोप-भोजन होजाता है ॥१॥ याको प्रकाशित करनेवाले दृष्टान्त:. तथा च श्रूयते शुकसारिकाम्यामन्यैश्च तियेभिर्मन्त्रभेदः कनः ॥३३॥ पः-बब पुरुषोंसे सुना जाता है कि पहिले कभी सोता मैना ने सथा दूसरे पशुओं ने राजाको गुम मा प्रकाशित कर दिया था। सिक:-मतः मंत्र स्थानमें पशु पक्षियों को भी नहीं रहने देना चाहिये ।।३३।। शिव होनेसे कष्ट होता है :म मवमेदादुरपन्न व्यसनं दुष्प्रतिविधेयं स्यात् ॥३४॥ अर्थगुप्त मंत्रणाके प्रकाशित होजानेसे राजाको जो संकट पैदा होता है वह कठिनाईसे भी न नहीं मा:इसलिये राजा को अपने मंत्रकी रक्षामें सदा सावधान रहना चाहिये। क्योंकि मंत्रभेदका निवार होता है। विद्वान्ने कहा है कि मंत्रके भेद होजानेसे राजाको जो संकट पैदा होता है, उसका मारा होना दिनमा वह कठिनाई से भी नष्ट नहीं होता ॥१॥ जिव धारणोंसे गुप्त मंत्रणा प्रकाशित होती है : इस्तिमाकारो मदः प्रमादो निद्रा च मंत्रभेदकारणानि ॥३५ ।। पर्व-गतमंत्रका मेद निम्नप्रकार पाँच मातोसे होता है, अतएव उनसे सहा सावधान रहमा (१) पति (गुप्त मंत्रणा करने वालेकी मुख चेधा), (२) शरीरकी सौम्ब या रो-भयंकर मारुति PM पीना [४] प्रमाद-असावधानी करना और (५) निद्रा । ।।३।। विचार शुकः–यो राजा मंत्रचक्षायाममाहूतः गति । अतिप्रसादयुक्तोपि विनिमय जिपि सः ॥१॥ समापन:-मंत्रभेदाच भास्प व्यसने मनायने । तत्कृसाम्नाशमभ्येति परणा-यथवा म या ॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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