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________________ १६६ तोलियायल वररुचि का संक्षिप्त इतिवृत्त हुआ है, मन्त्री था। milia अर्थः - इतिहास प्रमाण में वृद्धपुरुषोंके मुखसे सुना जाता है कि एक समय विशाच लोग हिरण्यगुप्त संबंधी वृत्तान्तकी गुम मंत्रणा कर रहे थे, उसे रात्रिमें वटवृक्ष के नीचे छिपे हुए वररुचि नामके मनुष्य (राज मंत्री) ने सुन लिया था; अतएव उसने हिरण्यगुप्तके द्वारा कहे हुए श्लोकके प्रत्येक पाद संबंधी एक अक्षरोंसे अर्थात् चारों पादोंके चार अक्षरों - ( अ-प्र-शि-ख) से पूर्ण (चारों पाद) श्लोककी रचना करनी । यह नन्द नामके राजाका जो कि ३२२ ई० पू० में भारतका सम्राट एक समय नन्दराजाकः पुत्र राजकुमार हिरण्यगुप्त बनमें कीड़ा करनेके लिये गया था। उसने रात्रिमें सोते हुए पुरुषको जो कि इसका मित्र था, खड्ग से मारडाला । उस पुरुषने भरते समय 'अ-प्र-शि-ख' यह पद उच्चारण किया, उसे सुनकर अपने प्रिय मित्रको धोखे से मारा गया समझकर हिरण्यगुप्त मित्रके साथ द्रोह करने के पापले ज्ञान-शून्य, किंकर्तव्यविमूढ़ और अधिक शोकके कारण पागलकी तरह ब्याकुल होकर कुछ काल तक स्वयं उसी जंगल में भटकता रहा । पश्चात् राज-कर्मचारियों द्वारा यहाँ-वहाँ ढढे जानेपर मिला और इसलिये वे उसे राजा नंद के पास लेगये । यह राजसभा में लाया गया । वहाँपर शोकसे पीड़ित होकर 'अ-प्र-शिख' प्रशिख अक्षरोंका वार-बार उच्चारणकर तुन्ध होरहा था, नंदराजने उसके अर्थको न समझ कर मंत्री पुरोहित और सदस्योंसे पूछा कि इसके द्वारा उच्चारण किये हुए अ-प्र-शि-ख पदका क्या अर्थ है ? परन्तु उसका अर्थ न समझने के कारण लोग चुपकी साथ गये। पर तु उनमें से वररुचि नामका मंत्री बोला कि राजन् एक दो दिनके पश्चात् मैं इसका अर्थ बतलाऊँगा । ऐसी प्रतिज्ञा करके वह रात्रि में उसी बनमें बढके वृक्ष के नीचे जाकर छिप गया। वहाँपर उसने पिशाचोंके द्वारा उक्त वृत्तांत (हिरण्यगुम- राजकुमार के द्वारा रा सोते हुए पुरुषका खडसे सिर काटा जाना) को सुना। पश्चात् प्रकरणका ज्ञान होजाने से उसने उक्त श्लोक के प्रत्येक चरणके एक र अक्षरसे अर्थात् चारों चरणोंके चार अक्षरोंसे राजसभानें जाकर निम्न प्रकार श्लोक बना दिया। वररुचि' रचित श्लोकका अर्थ:--' इसी तुम्हारे पुत्रने अर्थात्-नंद राजा के पुत्र हिरण्यगुप्तनं वनमें सोते हुए मनुष्य की चोटी खींचकर खड्गसे उसका शिर काट डाला ||१|| मंत्र:- गुप्त सलाह के प्रयोग्य व्यक्ति न तैः सह मंत्रं कुर्यात् येषां पक्षीयेष्वपकुर्यात् ॥३१॥ अर्थ :- राजाने जिनके बंधु आदि कुटुम्बियोंका अपकार - अनिष्ट ( वध बंधनादि ) किया है, उसे न विरोधियों के साथ मंत्र - गुप्त सलाह नहीं करनी चाहिये, क्योंकि विरोधियोंके साथ मंत्रणा करने से उसके भेदका भय रहता है-मंत्र प्रकाशित होजाता है ||३१|| शुक विद्वान्ने उक्त बातका समर्थन किया है कि 'राजाको उनके संबंधियोंके साथ कदापि मंत्र नहीं --- १ वररुचिरचितः श्लोकः श्रनेन तव पुत्र ेण प्रसुप्तस्य वनान्तरे । शिखामाकम्य पादेन ख ेनोपहतं शिरः |१| नोट:- यह पाठ सु० सू० पुस्तक से संकलन किया है सं० टी० पुस्तक में रहा नाट है देखो सं. डी. पु. ११ २ तथा च शुक वधादिकं कुर्यात्पार्थिवश्व विरोधिनां । तेषां संबंधिभिः सार्धं मंत्र: कार्यो न कहिंचित | ११ ।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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