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________________ नौतिषाक्यामृत प्रामसत्रियविशामेकतम स्वदेशजमाचाराभिजनविशुद्धमव्यमनिनमयभिचारिणमधीता महारत्रमस्त्रहमशेषोपाधिविशुद्ध च मंत्रिय छवीत ॥५॥ बुद्धिमान् गजा था प्रजाको निम्नप्रकारके गणोंसे विभूषित प्रधान मंत्री नियुक्त करना दिन-बामण, क्षत्रिय और वैश्य वर्णोमें से एक हो किन्तु शूद्र न हो, अपने देश आर्यावर्भ यी हो, किन्तु विदेशका रहनेवाला न हो, सदाचारी अर्थात् दुष्कर्मों में प्रवृत्ति करनेवाला न हो पीत्र प्रापरणवाला हो । जो कुलीन हो--जिमके माता और पिताका पज्ञ (वंश) विशुद्ध हो (जो कि मन वर्णवाने माता पितास रत्पन्न हो)। जो जुआ खलना, मद्यपान करना और पास्त्रीसेवन समासेदर हो।जो टोह करनेवाला नहो-जो दसरे राजासे मिला हश्रा न होकर केवल अपने मायुक्त हो । व्यवहार विद्यामें निपुण-नीतिज्ञ ( जिसने समस्त व्यवहार शास्त्रों-नीतिशास्त्रों अध्ययन किया हो)। युद्ध विद्यामें निपुण तथा शत्रु-चष्ट्राकी परीक्षामें निपुण हो अथवा प्रबारके छल-कपदसे रहित हो अर्थात दूसरेके कपटको जाननेवाला होने पर भी स्वयं कपट करने भावार्थ:- राल मंत्री दिल, योगरमाही मदानारी, कुलीर, व्यसनोंसे रहित, म्वामीमे करनेवाला, नीतिम, युद्ध-विधा-विशारद और निष्कपट, इन नौ प्रकारके गुणोंसे विभूषित होना मी उसके राज्यको चन्द्रवत् उन्नति (वृद्धि) होसकती है अन्यथा नहीं ॥५॥ मात्र गुणों में से 'स्वदेशवासी' गुणका समर्थन:म. समस्तपक्षपातेषु स्वदेशपक्षपातो महान् ॥६॥ समस्त पक्षपातोंमें अपने देशका पक्षपात प्रधान माना गया है। ही' नामके विद्वानने लिखा है कि 'जो राजा अपने देशवासी मंत्रोको नियुक्त करता है, वह मानेपर उससे मुक्त होजाता है ॥ १॥ भावार्थ:-राजमश्रीके उक्त ६ गुणोंमें से 'अपने देशका रहनेवाला' बह गुण मुख्य माना गया कि दूसरे देशका मंत्री अपने देशका पज्ञ करनेके कारण कभी राज्य का अहित भी कर सकता सन मन्त्रीको अपने देशका निवासी होना आवश्यक है । कर्ष:-जहाँपर 'दूसरे देशका रहनेवाला मनुष्य राजमंत्री नहीं होसकता' इस बातका समर्थन सहापर सरे देशका रहनेवाला व्यक्ति जो कि प्रजाके प्राचार-विचारसे शन्य है, शासक-- कार हो सकता है? एवं उसके शासन में रहनेवाली प्रजांको किस प्रकार सुखका लेश १म्पोंकि दूसरे देशका निवासी शासक अपने देशके पक्षपातरूपी पिशाच वतीने के कारण अपनी प्रजाका क्या हित कर सकता है ? अर्थात नहीं कर सकता। ME पाठक स्वयं सोच सकते हैं ।। ६॥ S ANEL हाम:-स्वदेश जममात्यं यः कुने मिती: । ग्रासकलेन सभ्यामन सनन विचर ।।।। Ramesh
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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