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________________ १५६ दुराचारसे होने वाली हानिका निर्देश:-- मन्त्रिसमुद्देश 30-00--------- विषनिषेक व दुराचारः सर्वान् गुणान् दूषयति ॥ ७ ॥ अर्थ:-- दुराचार - खोटा आचरण (कुत्सित और निद्य कमोंमें प्रवृत्ति) समस्त गुण नाश कर देता है, जिसप्रकार विषका भक्षण जीवन न अकार दुराचार भी दिया, कला और नीतिमत्ता, आदि मानवोचित गुणोंको अथवा रक्षा करनेवाले संधि और विम आदि षाड्गुण्यको नष्ट कर देता है। दुष्परिजनो मोहेन कुतोऽप्यपकृत्य न जुगुप्सते ॥ ८ ॥ -------4 MI अत्रि विद्वान्ने भी कहा है कि 'जो राजा दुराचारी मंत्रीको नियुक्त करता है, वह उसकी खोटो सल्लाह से अपने राजोचित सवगुणों-संधि-विग्रह आदि बाड्गुण्य को खो बैठता है- नष्ट कर डालता है ॥ १ ॥ निष्कर्ष::- राजाका प्रधान मंत्री सदाचारी होना चाहिये, अन्यथा उसके दुराचारी होनेपर राज्यवृक्षका मूल (राजनैतिक ज्ञान) और सैनिक संगठन आदि सदगुणों के प्रभावसे राज्यकी क्षति सुनिश्चित रहती है || ७॥ प्रधान मंत्रीके कुलीन - उपकुलवाले न होनेसे हानिः - राजासे द्रोह करनेवाले मंत्रोका स्वरूपः विष भक्षणको तरह कर देता है उसी राज्यकी वृद्धि और अर्थ:- नीच कुलवाला मंत्री राजामे द्रोह करके भी मोह के कारण किसी से भी लज्जा नहीं करता । यमाने भी कहा है कि स्वामी के साथ द्रोह जड़ाई-झगड़ा करने पर भी नीच कुलवालेको नहीं होती; अतः युद्धिमान् राजाको नीच कुलका मंत्री नहीं बनाना चाहिये ॥ १ ॥ भावार्थ:-- कुलीन पुरुष अज्ञानवश यदि कुछ दोष- अपराध करता है तो उसे सजा होती है, परन्तु नीच कुलवाला निर्लज्ज - बेशर्म होता है; इसलिये राजाको उच्च कुलका मंत्री बनाना चाहिये || मद्यपान - भादि व्यसनोंमें भासक मंत्री से होनेवाली हानि सम्पसन सचिव राजारूदव्यालगज इव नासुलभोऽपायः ॥ ६ ॥ अर्थ :- जिस राजाका मंत्री जुश्रा, मद्यपान और पर कलत्रसेवन आदि व्यसनों में फसा हुआ है, वह राजा पागल हाथीपर चढ़ े हुए मनुष्य की तरह शीघ्र नष्ट होजाता है ॥ ६ ॥ किं तेन केनापि यो विपदि नोपतिष्ठते ॥ १० ॥ 1 तथा च अत्रि :- दुराचारममात्यं यः कहते पृथिवीपतिः । मृगस्तस्य मंत्रेगा गुयान् सर्वान् प्रगाशयेत् ॥ १ ९ तथा च यमः — अकुलीनस्य नो लज्जा स्वामित्रो क्रने सति । [ मंत्रि कुलीनं च तस्मान स्थापयेधः ] ॥ १ ॥ नोट: - इस श्लोक का तीन चरण संशोधित एवं परिवर्तित किया गया है तथा ४ चरणकी रचना हमने स्वयं की है क्योंकि सं० टी० पुस्तक में अशुद्ध पा हुआ था | सम्पादकप्रतियों में है; परन्तु अर्थ-भेद कुछ नहीं है । ३ 'सुलभाषाय:' ऐसा पाठ ० और इ० लि.
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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