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________________ मन्त्रि-ममुरेश Oda........ हारीत विद्वानने लिया है कि 'उनम पुरुषों में स्थापित या प्रतिष्ठित पाषाण भी देव होजाता है, सब क्या उनकी मंगतिसे मनुष्य उत्तम नहीं होसकता ? अवश्य होसकता है ।।१। निष्कर्ष:-इसलिये राजाको या सर्व साधारण मनुष्योंको महापुरुषोंकी बात माननी चाहिये ॥३|| मुक्त सिद्धान्तका ऐतिहासिक प्रमाण द्वारा समर्थन: तथा चानुश्रयत विष्णुगुमानुग्रहादनधिकृतोऽपि किल चन्द्रगुप्तः साम्राज्यपदमवारेति ॥४॥ अर्थ:-इतिहास बताना है कि चन्द्रगुप्त मौर्य (मम्राट् नादका पुत्र) ने स्वयं राज्यका अधिकारी न होने पर भी विष्णुगुन-चाणिक्य नामके विद्वानके अनुमहसे साम्राज्य पदको प्राप्त किया * ||४|| शुभनामके विद्वानने लिखा है कि जो राजा राजनीतिमें निपुण महामात्य-प्रधान मंत्री-की नियुक्ति करनेमें किसी प्रकारका विकल्प नहीं करता, वह अकेला होनेपर भी राज्यश्रोको पाम करता है। जिमकार चन्द गुन सोरी में प्रोले होने वो समय मापके विद्वान् महामात्यको सहायतासे राज्यभीको प्राप्त किया था ॥१॥' प्रधान मंत्री सद्गुणोंका निर्देश: .---. --.. -... -. .------ १ तथा च हारीत:--पाषाणोऽपि च विवुध: समापितो यः प्रजायने । उत्तमैः पुषस्तैस्तु कि म त्या मानुषोऽपरः ॥३॥ * इतिहास बताता है कि ३२२ ई.पू. में नन्द वंशका राजा महापद्मनन्द मगधका सम्माद था | नन्दवंश के राजा अत्याचारी शासक थे, इसलिये उनकी प्रजा उनसे श्रप्रसन्न होगई और अन्त में विषागुम-चाणक्य नाम ब्राह्मण विद्वान्की सहायतासे गुम यश के अन्तिम गाजाको उसके सेनापति चन्द्रगुप्त मौर्यने १२२ ई. पू. में गद्दी मे उतार दिया और स्वयं राजा बन बैठा। मेगास्थनीज नामक यूनानी राजदूतने जो कि चन्द्रगुप्तके दरवार में रहता था, चन्द्रगुप्तके शासन प्रयस्थ की बड़ी प्रशंसा की है। इसने २५ वर्ष पर्यन्त नीतिन्यायपूर्वक राज्य शासन किया। कयामरितसागर में भी लिखा । कि नन्द राजा के पास बE करोड़ सुवर्ण मुद्राएं, थी । अतएव इसका नाम ननंद था। इसी नंदको मरवा कर चाणक्यने चन्द्रगुप्त मौर्य को मगध की राजगद्दी पर बैठाया । किन्तु इतने विशाल साम्राज्य के अधिपति की मृम्युके बाद मरलनासे उक्त माम्राज्यको हस्तगत करना जरा देई वीर थी। नंदके मंत्री राक्षस-यादि उसकी मृत्यु के बाद उसके बशजोको राजमवी पर बिठा कर मगध साम्राज्यको उमी बंगमें रखने की चेष्टा करते रहे । इन मंत्रियोंने चायक्य तथा चन्द्रगतिकी मिलित शक्तिका विरोध बट्टी हटुतामे किया । कवि विशाखदत्त मुद्राराक्षमम लिखते हैं कि शक,यवन, कम्बोज व पारमीक श्रादि जाति के राजा चमगुप्त और पर्वतश्वरको सहायता कर रहे थे। करीब ५-६ वर्षों तक चन्द्रगुप्तको नन्दवंशके मंत्रियों ने पाटलिपुत्र में प्रवेश नहीं करने दिया, किन्तु विष्णुगुप्त-चाणक्य (कौटिल्य) की कुटिल नीति के सामने इन्हें सिर मुकांना पहा । अन्तम बिजयी चन्द्रगुप्तने चाणक्य की सहायतासे नन्दवंशका मूलोच्छेद करके सुगांगप्रासादमें बड़े सामागेह के साथ प्रवेश किया। निष्कर्ष:-चाणक्यने विपकन्या के प्रयोगये नंदोंको मरवाकर अपनी प्राज्ञाके अनुसार चलनेवाले चत्रगुप्त मौर्यको मगधमान्तके साम्राज्य पद पर आसीन किया। इसका पूर्ण व साम पाटकों को कात्रि विशाखदत्तके, मुबाराबसमे तथा अन्य कथासरितमागर श्रादि प्रमथ से जान लेना चाहिये । विस्तारके भयसे अधिक नहीं लिखना चाहते। २ तथा शुक्र:-महामाश्य यये राजा निर्विकल्प करोति यः । एकशोऽपिमही लेमे दीनोमि दलो यथा ॥5॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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