SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १४६ वार्वास मुद्देश । 400000. In I+HI14 . राष्ट्रके शत्रुओका निर्देश करते हैं: ___ चौर-चरट-मप-धमन-राजवल्लभाटविकतलारावशालिकनियोगिग्रामकटवाई षिका हि राष्टस्य कण्टकाः' ॥२१॥ अर्थः-चोर, देशसे घर किाले मारी, खेतोको कान पौरहकी नाप करनेवाले, व्यापारियोंकी वस्तुका मूल्य निश्चय करनेवाजे, राजाके प्रेमपात्र, जंगल में रहनेवाले मील वगैरह या जंगलकी रक्षामें नियुक्त किये गये अधिकारी, स्थानकी रक्षामें नियुक्त किये गये कोहपाल या पुलिस वगैरह, जुभारी या सेनापति, राज्यके अधिकारी वर्ग, पटवारी, बलवान् पुरुष तथा प्रम-संग्रह करके अकाल दुर्मिज्ञकी कामना करने वाले व्यापारी लोग ये राष्ट्र के कण्टक-शत्रु हैं। भावार्थः-चोर प्रजाका धनादि अपहरण करनेके कारण तथा अन्य लोग रिश्वत वगैरह लेकर या मौका पाकर बगावत करनेके कारण एवं अन्न संग्रह करके अकाल चाहनेवाले व्यापारी भी प्रजा को पीड़ित करनेसे राज्यके कण्टक-शत्रु कहे गये हैं ; क्योंकि ये लोग साम, दान, दण्ड और भेद आदि उपायों से राष्ट्र में उपद्रव करते हैं; अतएव राजाको इनकी उपेक्षा नहीं करनी चाहिये-यथासमय उनकी देख-रेख रखनी चाहिये और इनको अपराधानुकूल दंड देते रहना चाहिये ।। २१ ॥ गुरु विद्वान्ने लिखा है कि जो राजा चोर वगैरहको प्रत्यक्ष देख लेने पर भी उनसे अपने देशकी रक्षा नहीं करवा--उनका निप्रह करके अपनी प्रजा की रक्षा नहीं करता उसका कुल-परम्परासे चला आया राज्य भी नष्ट होजाता है ॥१॥ जिसप्रकारके राजाके होनेपर राष्ट्र-कण्टक नहीं होसे: प्रतापवति राशि निष्ठुरे सति न भवन्ति राष्ट्रकण्टकाः' ॥२२॥ अर्थ:-जिस देशमें राजा प्रतापी (पुण्यशाली, राजनीसिविद्यामें कुशल और तेजस्वी) तथा कठोर शासन करनेवाला होता है, उसके राज्यमें राष्ट्रकपटक-प्रजाको पीड़ित करनेवाले अन्यायी पौर वगैरह नहीं होते ॥२२॥ १ 'चौर-पाटाऽन्वयधमन-रानवल्लभाविक-तलार-किराताक्षशालिक-नियोगि-ग्रामकूट-बादुषिका हिराष्टकण्टका: इस प्रकारका पाठ मु. म. और भाएडारकर रिसर्च गवर्न० लापये पूनाकी .. लि. दो प्रतियों में वर्तमान है। इसका भर्य:-चोर, गुजपूत-जो नानाप्रकारकी वैर-भूषा और भाषा श्रादि के द्वारा अपने को गुप्त रखकर देय, नगर, प्राम और गादि में प्रविष्ट शेकर वहाँ के गुप्त-वतान्त को राजा के लिये निवेदन करते हो, अन्वर-धमन--4 को फोति-गान करनेवाले चारण गैरस, राजा के मेम-पात्र, पाटविक-जंगलोंकी रखाके लिये नियुक्त किये हुए अधिकारी गण, तसार-छोटेर स्थानों में नियुक्त किये हुए अधिकारी, भील, कुमारी, मंत्री और अमात्य-मादि अधिकारीगण, मामट-पटवारी बोर अन्नका संग्रह करनेवाले व्यापारी ये " व्यकि राष्ट के कण्टकसौ-कांटों के समान राष्ट्र में उपद्रव करने वाले है। २ तथा च गुरु:-चौरादिक्रेभ्यो भ्यो यो न राष्ट्र प्ररक्षति | तस्य तन्नाशमायाति यदि स्यापितृपैसकम् ॥ ३-'मतापयति कण्टकशोधनाधिकरवाशे राशि न प्रभवम्ति' ऐसा मुऔर पूनाको इ० लि० मूल प्रतियोंमें पाठ है निसका अर्थ यह है कि पूर्वोक चोर वगैरह राष्ट्र एक-एता और कएटको प्रयापी और माततायियोंनिग्रह करनेके उरायोको जाननेवाले राजाके होनेपर नहीं होते। - --- .. - -- - ---
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy