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________________ bibillion tfsareanमृत १४५ विद्वानने लिखा है कि 'वणिक लोग नापने - तोलने के बाटोंमें गोलमाली करके, वस्तुओंका उदार और चतुराईसे विश्वास दिलाकर लोगों के धनका अपहरण करते रहते हैं, अतएव यं मध्य प्रत्यक्ष चोर कहे गये हैं ||१|| लोगों द्वारा परस्परकी ईर्षासे वस्तुओं का मूल्य बड़ा देने पर राजाका कर्तव्यः स्पर्द्धया मूलवृद्धिर्भाएउंषु राज्ञो यथोचितं मूल्यं विक्र ेतुः ॥१८॥ -यदि व्यापारी लोग परस्परकी ईर्षा वश वस्तुओंका मूल्य बढ़ा देवें- अपनी वस्तुओं को अधिमासे बेचने लगे--उस समय राजाका कर्तव्य है कि वह उस बढ़ाये हुए मूल्बको व्यापारी वर्गसं और व्यापारियोंको केवल उचित मूल्य ही देवे ||१८|| मूल्य राजाका विज्ञानमे लिखा है कि 'व्यापारी बर्गके द्वारा स्पर्द्धासे बढ़ाया हुआ वस्तुओंका और बेचनेवाले व्यापrist केवल उचित मूल्य ही मिलना चाहिये ||१|| नि बहुमूल्य वस्तुको अल्पमूल्य में खरीदनेवाले व्यापारीके प्रति राजाका कर्तव्यः — अल्पद्रव्येण महाभाण्डं गृहणतो मूल्याविनाशेन तद्भाएड राज्ञः ||१६|| यदि किसी व्यापारी वस्तु सुबर्ण आदि को धोखानेकर थोड़े मूल्य में "मी हो, तो राजाको खरीदने वाले की वह बहुमूल्य वस्तु जब्त कर लेनी चाहिये परन्तु बेचने वालेमल्पमूल्य जितना उसे खरीदारने दिया था दे देना चाहिये ||१६|| विद्वान भी उक्त बातका समर्थन करता है कि 'जब चोर या मूर्ख मनुष्योंने किसी व्यापारीको ..बस्तु - सुवर्ण आदि - अल्पमूल्य में बेंच दी हो, तो राजाको उसका पता लगाकर खरीदने वाले की मुल्य बस्तु जस्त कर लेनी चाहिये और बेचनेवालेको अल्पमूल्य दे देना चाहिये ||१|' उपेक्षा करने से हानि: -- न्यायोपेक्षा सर्व विनाशयति ॥ २० ॥ पर्व : जो राजा राष्ट्र में होनेवाले अन्यायोंकी उपेक्षा करता है - अन्याय करनेवाले चोर आदिको दंड नहीं देता उसका समस्त राज्य नष्ट होजाता है ||२|| विज्ञाने लिखा है कि 'जिस देशमें राजा क्षमा-धारण करके सन्याय करनेवालोंका निग्रह - नहीं करता उसका वंश-परंपरा से प्राप्त हुआ भी राज्य न होजाता है ॥१॥" भदेवः मानेन किचिन्मूल्येन किंचितलवाऽपि किमित्यापि किचित् । किचि किच गृहीतुकामाः प्रत्यक्षचौरा वणिजो नराणाम् ॥१॥ स्वयं' या निहित मूल्य भारहस्याप्यधिकं च यत् । मूल्यं भवति तद्वाशोचितुमानम् ॥ १ ॥ - ई० टी० पृ० ६६ । शुकः अभ्यायाम् भूमियो यत्र न विषेश्वतम। तस्य राज्यं च याति व िस्यात् क्रमानम् ॥ २ ॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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