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________________ * नीतिवाक्यामृत * H u m ....... . ... अब इन्द्रियोंका लक्षण निर्देश करते हैं: आत्मनो विषयानुभवनद्वाराणीन्द्रियाणि ॥ ७ ॥ अर्थः-यह आत्मा जिनकी सहायतासे विषयों---स्पर्श, रस और गंधादि-का सेवनकरता है उन्हें इन्द्रियाँ कहते हैं ।। ७॥ भ्य' विद्वान्ने लिखा है कि 'जिसप्रकार स्वामी शिष्ट सेवकों की सहायतासे कार्य कराता है उसीप्रकार श्रात्मा भी इन्द्रियोंकी सहायतासे पृथक २ विषयोंके सेवनमें प्रवृत्ति करता है ।। १॥ प्रय इन्द्रियोंके विषयोंका निरूपण करते हैं: शब्दस्पर्शरसरूपगन्धा हि विषयाः ॥ ८ ॥ अर्थः-शब्द, स्पर्श, सच, रूम और गायेन्द्रको निपल हैं।!। अब मानके स्वरूपका वर्णन करते हैं: समाधीन्द्रियद्वारेण विप्रकृष्टसनिकृष्टावबोधो ज्ञानं ॥ ६ ॥ अर्थ:--ध्यान और इन्द्रियों के द्वारा क्रमशः परोक्ष (देश, काल और स्वभावसे सूरम-पदार्थ-जैसे सुमरु, राम-रावण तथा परमाणु वगैरह पदार्थ जो इन्द्रियों द्वारा नहीं जाने जासकते) और प्रत्यक्ष वस्तुओंसमीपवर्ती पदार्थों के जाननेको 'शान' कहते है। अब सुखका जमण करते हैं: सुखं प्रीतिः ॥१०॥ मर्थ:-जिससे आत्मा, मन और इन्द्रियोंको बानन्ध हो उसे 'सुख' कहते हैं ॥ १० ॥ हारीत विद्वाम्ने लिखा है कि 'जिस पदार्थके देखने या भक्षण करने पर मन और इन्द्रियोंको श्रानन्द प्राप्त हो उसे 'सुख' कहा गया है॥१॥' १ तथा चरेभ्यःइन्द्रियाणि निजान ग्राह्यविषयान् स पृथक् पृथः । प्रात्मनः संप्रयच्छन्ति सुभृत्याः सुप्रभोर्या ॥३॥ २ यशपर सं० टी० पुस्तकमें सूत्रों का प्राकरणिक एवं अम्बर-मानुपूर्वा-संकलन नहीं था, अतएव हमने मु. और ह• लि० मुल प्रतियों के आधारसे उनका क्रमबद्ध संकलन किया है। म्पादक३ तथा च हारीत:__ मनसश्चेन्द्रियाणां च यत्रानन्दः प्रजायते ।। हो वा भक्षिते वापि तत्सुख सम्प्रकीर्तितम् ॥१॥
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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