SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * नीतिवाक्यामृत जो केवल खानेमात्रको धान्यविशेष और घृत का संग्रह करता है और अग्निकी पूजा करता है उसे 'सद्यःप्रक्षालक" कहते हैं ||२४|| अब यति-साधुका लक्षणनिर्देश किया जाता है:--- यो देहमात्रारामः सम्यग्विद्यानौलाभेन तृष्णासरिचरणाय योगाय यतते यतिः ॥ २५ ॥ अर्थः- जो शरीरमात्रसे अपनी आत्माको सन्तुष्ट रखता है- शरीरके सिवाय दूसरे बहिरङ्ग - धन-धान्यादि और अन्तरङ्ग — काम-क्रोधादि — परिप्रहका त्याग किए हुए हैं एवं सम्यग्ज्ञानरूपी नौकाफी प्राप्तिसे तृष्णारूपी नदीको पार करनेके लिए ध्यान करनेका प्रयत्न करता है उसे 'यति' कहते हैं। हारीत" विद्वान्ने भी उक्त बात की पुष्टि की है कि 'जो आत्मा में लीन हुआ विद्याके अभ्यास में तत्पर है और संसाररूपी समुद्रसे पार होनेके लिये ध्यानका अभ्यास करता है उसे यति कहते हैं ॥ १ ॥' स्वामी समन्तभद्राचार्यने' भी कहा है कि जो पंचेन्द्रियोंके विषयों की लालसासे रहित, कृष्यादि आरंभ और बहिरङ्ग ( धन धान्यादि) एवं कोवापरिग्रहका त्यागी होकर ज्ञान, तपश्चर्या में लीन रहता है उसे यति-तपस्वी - कहते हैं ।। १ ।। ध्यान और इसीके जितेन्द्रिय, क्षपणक, आशाम्बर, नग्न, ऋषि, यति, तपस्वी और अनगार आदि अनेक गुणनिष्पन्न सार्थकक-नाम यशस्तिलक में आचार्यश्रीने व्यक्त किये हैं परन्तु विस्तारके भयसे हम उनका संकलन करना नहीं चाहते ॥ २५ ॥ अब अन्य मतकी अपेक्षासे यतियोंके भेद बताते हैं: 'कुटीचर व व्होद कहंस परमहंसा यतयः ॥ २६ ॥ अर्थ:-यति- साधु - चार प्रकारके होते हैं:-कुटीचर, यव्होदक, हंस और परमहंस जो त्रिदडी (ऐसे दंडविशेष को धारण करनेवाला जिसमें चोटी और जनेऊ बँधे हुए हों अथवा न भी बँधे हुए हों ), शिरपर केवल चोटी रखनेवाला, यज्ञोपवीत — जनेऊ – का धारक, झोपड़ी में रहनेवाला और जो एकबार पुत्रके मकान पर स्नान करता हो तथा मोपड़ी में निवास करता हो उसे 'कुटीचर' कहते हैं ||१|| जो झोपड़ी में रहकर गोधरीवृत्तिसे आहार करता हो और विष्णु की जाप जपनेमें तत्पर हो उसे 'बम्होदक' कहते हैं ॥२॥ १ देखो नीति संस्कृत टीका पृष्ठ ५० २ तथा च हारीत: श्रमाराम भवेद्यस्तु विद्यासेवनतत्परः । संवारतरणार्थाय योगभाग् य तिरुच्यते ॥ १ ॥ विषयाशावशातीतो निरारम्भोऽपरिषदः । शानध्यानतपोरतस्तपस्वी सः प्रशस्यते ॥ २ ॥ ४ – उक्त सूत्र भी मु० सू० पुस्तक में और गर्न लायब्रेरी केवल संस्कृत टीका पुस्तक में है। रत्नकरण्डे स्वामी समन्तभद्राचार्यः । पूना की हस्तलिखित मू० दोनों प्रतियों में नहीं है
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy