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________________ * नीतियाक्यामृत * विशेष विमर्श:--इन्हीं आचार्यश्रीने' यशस्तिलकचम्पूमें कहा है कि जो प्रामीण पुरुषोंकी नीतिविरुद्ध प्रवृत्ति और धनधान्यादि वाह्य तथा कामक्रोधादि अन्ताङ्ग परिग्रहका त्याग कर अहिसा और सत्य आदि संयमधर्मको धारण करता है उसे वानप्रस्थ समझना चाहिये । परन्तु इसके विपरीत जो स्त्री श्रादि कुटुम्बयुक्त होकर वनमें रहता है उसे वानप्रस्थ नहीं कहा जासकता ।। १ ।। चारित्रसाग्में ग्यारहवीं प्रतिमाके चरित्रको पालनेवाले क्षुल्लक और ऐलकको 'वानप्रस्थ' कहा है । विरजेषण और परीक्षण:-- उक्त प्रमाणोंमे यह निर्विवाद सिद्ध होता है कि उक्त लक्षण जैनसिद्धान्तको अपेक्षा नहीं है। अतः आचार्यश्रीने परमतफी अपेक्षामे बानप्रस्थका लक्षण संकलन किया है अथवा अन्यमनानुयायी मेम्कन टीकाकारने ऐसा किया है। क्योंकि यशस्तिलकमें वानप्रस्थको स्त्रीसहित इनमें रहनेका स्पष्ट निषेध किया गया है ।।३।। भब परमतकी अपेक्षासे वानप्रस्थके भेद कहते हैं: वालिखिन्य प्रौदपरी वैश्वानराः सद्यःप्रचल्यकरचति वानप्रस्थाः' ॥२४॥ वानप्रस्थ धार प्रकारके है:-बालिखिल्य, प्रौदम्बरी, वैश्वानर और सदाःप्रक्षल्यक' । जो प्राचीन गाईपत्य अग्निको स्यागकर केवल अरणी--समिविशेष—को साथ लेजाकर विना स्त्रीके धनको प्रस्थान करता है यह वनमें रहनेवाला 'वालिस्विल्य' है ॥२॥ जो स्त्रीसहित वनमें रहकर पांचों अग्नियोंसे विधिपूर्वक पांच यज्ञ-पितृयज्ञ, देवया, ब्रह्मयज्ञ, अतिथिया और ऋपिया- करता है उसे विद्वानोंने 'श्रौदुम्बर' कहा है ॥२॥ जो यमपूर्वक त्रिकाल स्नान करता है और अतिथियों की पूजा करके उन्हें खिलाकर-कंदमूल और फलों का भक्षण करता है वह 'यैश्यानर' कहा गया है ।।३।। । ग्राम्यमर्थ पश्चिान्तर्यः परित्यज्य संयमी । पानप्रस्पः स विशेयो न वनरूया कुटुम्बयान ||१|| यन्तिनके मोमदेवरिः श्रा० - २ 'वानप्रस्या अपरिगृहीतजिनल्या वस्त्रखण्डधारिणो नितिशयतप:समुद्यता भवन्ति'-चाग्निसारे । अर्ध:--मुनि मुद्रा-दिगमार अपस्पा को धारण न करके, वस्त्र या खंडवस्त्रको धारण करनेवाले (खेडचादर और मंगोटाके पारक दुरुसक और केवल लंगोटीके धारक ऐलक) महात्माश्रोको जोकि साधारण तपश्चर्याम प्रयत्नशील उन्हें 'वानास्प कहते है।। उक्त सत्र न तो मु० मू० पुस्तकमे और न हस्तलिखित गवर्न• लायब्ररी पुनः को दोनों पुस्तकोमें पाया जाता है किन्तकृत टीका पुस्तकमें है। ४ मोर- यनका भी जैन सिद्धान्तमे समन्वय नहीं होता; अतएव संस्कृत टोकाफार की रचना या भाचार्यश्रीका परमतको अपहासे संकलन जानना चाहिये। -सम्पादक।
SR No.090304
Book TitleNitivakyamrut
Original Sutra AuthorSomdevsuri
AuthorSundarlal Shastri
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, P000, & P045
File Size12 MB
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