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माया - मात्रा । मीयतेऽसौ मीयते वाऽनयेति माया ।
जो मापा जाता है अथवा जिससे मापा जाता है, वह मात्रा है।
मार- कामदेव खाणे खणे मारयतीति मारो।
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जो क्षण-क्षण में मारता है, वह मार / कामदेव है ।
माहण - माहन, अहिंसक मा इह सव्वसत्तेर्हि भणमाणो अहणमाणो य माइणो भवति । किसी सत्त्व का हनन मत करो, ऐसा कहने वाला माहन कहलाता है हनन नहीं करता, वह 'माइन' होता है। मीसियाकहा- मिश्रकथा धम्मो अत्यो कामो उवइस्सइ जत्थ सुत्त कव्येसु लोगे वेदे समए, साव कहा मीसिया नामं ॥
मुट्ठि मुष्टि। अंगुटुंगुलितलसंघातो मुट्ठी ।
अंगूठे और अंगुलि का संघात होना ष्ट है।
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मुनि मुनि । मुणेति जगं तिकालावस्थं मुणी ।
जिन सूत्रों, काव्यों तथा लौकिक ग्रन्थों - रामायण आदि में, यज्ञ आदि क्रियाओं में तथा सामयिक ग्रन्थों— तरंगवती आदि में धर्म, अर्थ और काम- इन तीनों का कथन किया जाता है, वह मिश्रकथा है।
( दर्शनि १७९)
(६चू-५. ३५)
( आचू. पृ. १०४ )
(उच्. पृ. २०३)
जो त्रिकालावस्थित जगत् को जानता है, वह भुनि हैं।
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मनुते मन्यते वा धर्माधर्मानिति मुनिः ।
धर्म और अधर्म का मनन करने वाला मुनि होता है।
• सावज्र्ज न भासति ति मुणी ।
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सावज्खेसु भोर्ण सेवति ति सुणी ।
जो सावध वाणी नहीं बोलता, वह मुनि है। मुक्त - मुक्त | बाहिरब्धंतरेहि गंधेहिं विप्यमुक्तो मुत्तो ।
बाह्य और आभ्यन्तर ग्रंथि से रहित मुक्त कहलाता है। 'ज्ञानावरणीयादिकर्मबन्धनाद्वियुक्तो मुक्तः ।
ज्ञानावरणीय आदि कर्मबंधन से विमुक्त मुक्त कहलाता है।
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मुम्मुर - मुर्मुर। करिसगादीण किंचि सिद्धो अग्गी मुम्मुरो ।
निर्युक्तिपंचक
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• मुम्पुरो नाम जो छाराणुगओ अग्गी सो मुम्मुरो । कंडे की अग्नि या क्षारादिगत अग्नि-कण को मुर्मुर कहते हैं।
( उचू. पृ. १३३)
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विरलाग्निकणं भस्म मुर्मुरः ।
वह राख जिसमें विरल अग्निकण हो, मुर्मुर कहलाती है।
(आचू. पृ. १०८ )
( दशअचू. पृ. ३८, दशजिचू. पृ. ७४ )
अथवा जो किसी का
( सूचू. १ पृ. २४६ )
( दशअचू. पू. २३४)
( सूटी. पृ. ९७ )
(दशअचू पृ. ८९, दशजिचू. पू. १५६ )
(दशहाटी. प. १५४)
मुम्मुही - मुन्मुखी (जीवन की एक अवस्था)। विणओकमंतो मूक इव भाषते मुम्मुही। जिस अवस्था में व्यक्ति मूक की भांति बोलता है, वह मुन्मुखी हैं ।
(दचू.प. ३)