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________________ परिशिष्ट ७ : परिभाषाएं ६५५ मणि-मणि। मयते मन्यते वा तमलङ्कारमिति मणिः।। जो उस-उस अलंकार को श्रेष्ठ बना देता है, वह मणि है। (उचू. पृ. १५१) मणोरम-मनोरम । मणोरमे मासि अत्र मनस्विना रमन्त इति मणोरमे भवति। जो मनस्वी लोगों के मन में रमण करता है, वह मनोरम है। (सूचू.१ पृ. १४६) मच्छर-मात्सर्य। मत्सरो नाम अभिमानपुरस्सरो रोषः। जो अभिमानयुक्त रोष होता है, वह भात्सर्य है। (सूचू.१ पृ. ७४) महवया-मार्दव । महवता जाति-कुलादीहिं परपरिभवाभावो। जाति, कुल आदि के आधार पर दूसरों का परिभव न करना मार्दव है। (दशअचू-पृ. ११) मयगंगा-मृतगंगा। मतगंगा हेटाभूमीए गंगा अण्णमण्णेहिं मग्गेहि जेण पुष्य योदूर्ण पच्छा ण वहति सा मतगंगा भण्णति। गंगा प्रतिवर्ष नए-नए मार्ग से समुद्र में जाती है। जो मार्ग चिरत्यक्त हो, बहते - बहते गंगा ने जो मार्ग छोड़ दिया हो, उसे मृतगंगा कहा जाता है। (उचू. पृ. २१५) महिया-महिका, कुहरा। जो सिसिरे तुसारो पडह, सा महिया भण्णा। शिशिर काल में जो तुषार गिरती हैं, वह महिका कहलाती है। (दशजिचू. पृ. १५५) • गर्भमासादिषु सायं प्रातर्वा धूमिकापातो महिकेत्युच्यते। गर्भमास आदि में सायं और प्रातः जो धूअर आती है, वह महिका कहलाती है। (आटी. पृ. २७) • पातो सिसिरे दिसामंधकारकारिणी महिता। शिशिर में जो अंधकारकारक तुषार गिरता है, उसे महिका या कुहरा कहते हैं। (दशअचू. पृ. ८८) महेसि-महान् की एषणा करने वाला। महानिति मोक्षो तं एसन्ति महेसियो। जो महान् अर्थात मोक्ष की एषणा करता है, वह महेषी-महर्षि हैं। (दशअचू. पृ. ५९) मागह-मागध। वइस्सेण खत्तियाणीए जाओ मागहो त्ति भण्णा। वैश्य पुरुष से क्षत्रिय स्त्री में उत्पन्न संतान मागध कहलाती है। (आचू. पृ. ५) माण-सम्मान । भाणो अभुट्ठाणादीहिं गव्वकरण। अभ्युत्थान आदि से गर्व करना मान है। (दशअचू.पृ. १३३) • जाति-कुल-रूप बलादिसमुत्थो गर्यो मानः। जाति, कुल, रूप, बल आदि से उत्पन्न गर्व मान है। (आटी. पृ. ११४) माभग-ममकार करने वाला। मामको णाम ममीकार करोति देशे ग्रामे कुले वा एगपुरिसे वा। जो देश, ग्राम, कुल अथवा किसी पुरुष विशेष में ममकार करते हैं, वे मामक-मोही हैं। (सूचू. १ पृ. ६७) माया-माया। परवञ्चनाध्यवसायो माया। दूसरे को ठगने की भावना माया है। (आटी. पृ. ११४)
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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