SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 745
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट ७ परिभाषाएं नियाग- निल्लाग्ग्र नियागं प्रतिणियतं र्ज धिकरणं । प्रतिनियत तथा प्रतिबद्ध भिक्षा नित्याग्र है । निरास्य- आशा रहित । निग्गता आसा अपसत्या अस्स सी निरासए । जिसमें अप्रशस्त आशा नहीं होती, वह निराशक है। निव्वेयणी - निवेदनी कथा । पाषाणं कम्माणं, असुभविवागो कहिज्जए जत्थ । इह य परत्य य लोए, कहा उ णिब्वेयणी णाम || जिस कथा में इहलौकिक और पारलौकिक पाप कर्मों के अशुभ विपाक का वर्णन होता हैं, वह निर्वेदनी कथा है। ( दर्शान. १७४) निसग्गरुइ—निसर्गरुचि । निसग्गरुई ग्राम सिग्गो सहावी सहावेण चैव जिणपणीए भावे रोयइ बहुजणमज्झे य महता संवेगसमावण्णो पसंसइ एस निसग्गरुई । जो स्वभावत: जिनप्रणीत भावों / पदार्थों में रुचि रखता है तथा तीव्र वैराग्य के कारण जनता से प्रशंसित होता हैं, वह निसर्गरुचि हैं। ( दशजिचू. पू. ३३) ( उचू. पृ. ९६ ) निसाद - निषाद । बंधणेण सुद्दीए जातो णिसादो ति युच्चति । ब्राह्मण पुरुष से शूद्र स्त्री में उत्पन्न व्यक्ति निषाद कहलाता है । निसेच्या - निषद्या । निषद्या स्वाध्यायभूम्यादिकां यत्र निषद्यते । Es ( दशअचू. पू. ६० ) (दशजिचू. पू. ३२८) जहां बैठकर स्वाध्याय आदि किया जाता है, वह निषद्याभूमि / स्वाध्यायभूमि है। ( उशांटी - प. ४३४ ) पयोगकम्म — प्रयोगकर्म । जम्मि पओए वट्टमाणी कम्मपोग्गले गिम्हइ तं पओगकम्मे । जिस प्रयोग में प्रवृत्त होकर जीव कर्म पुद्गलों को ग्रहण करता हैं, वह प्रयोगकर्म हैं। पंक- पड्डू। पंको नाम स्वेदाबद्धो मलः । ( आचू. पृ. ४८ ) पसीने के साथ शरीर पर जमा हुआ मैल पंक कहलाता है। पंडिय - पंडित | पंडिता इति सा बुद्धिपरिकम्मिता जेसिं ते । ( उचू. पृ. ७९ ) जिनकी बुद्धि परिकर्मित होती हैं, वे पंडित कहलाते हैं। पापाडीनः पण्डितः पण्डा वा बुद्धिः पण्डितः । ( दशअचू. पू. ४८ ) जो पापों से रहित है, जिसकी बुद्धि पंडा - तत्त्वानुगा है, वह पंडित है। (उ.पू. २८) • पंडिया णाम चत्ताणं भोगाणं पडियाइयणे जे दोसा परिजानंति पंडिया । जो त्यक्त भोगों के पुनः सेवन से होने वाले दोषों को जानते हैं, वे पंडित कहलाते हैं। (दशजिचू. पृ. १२) पक्खपिंड -- पक्षपिंड । पक्खपिंडो दोहिं वि बाहाहिं उरुगजाणूणि घेत्तूण अच्छर्ण । दोनों हाथों से घुटनों एवं साथल को वेष्टित करके बैठना पचपिंड है। ( उचू. पृ. ३५ ) पगासभोइ – प्रकाशभोजी (दिन में भोजन करने वाला) । प्रकाशभोई दिवसतो भुंजति न रात्रौ । जो दिन में भोजन करता है, रात में नहीं, वह प्रकाशभोजी हैं। ( दधू.प. ४० ) पचक्खाणपरिण्णा - प्रत्याख्यानपरिज्ञा । पच्चक्खाणपरिण्णा नाम पार्व कम्मं जाणिऊण तस्स पावस्स जं अकरणं सा पच्चक्खाणपरिण्णा भवति ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy