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निर्युक्तिपंचक
I
धम्मत्यिकाय - धर्मास्तिकाय । धम्मस्थिकायो गतिपरिणयस्स गमणोषकारि त्ति गतिसभावो गतिलक्खणो । गति में परिणत जीव और पुद्गल की गति में उपकारी, गतिस्वभाव तथा गतिलक्षण वाला पदार्थ धर्मास्तिकाय हैं।
( दशअचू. पू. १० )
धारणा - धारणा । अतीतगंथधरण धारणा ।
(दशअचू. पू. ६७)
( सूचू. १ पृ. २१)
अतीत को धारण करना - स्मृति में रखना धारणा हैं। धीर-धीर । धीरो इति बुद्धादीन् गुणान् दधातीति धीरः । जो बुद्धि आदि गुणों से युक्त हैं, वह धीर है। धुयमोह - मोह जीतने वाला भुयमोहा नाम जितमोह त्ति वृत्तं भवइ । मोह जीतने वाले को धुतमोह कहा जाता है। ध्रुवजोगी - ध्रुवयोगी। धुवजोगी नाम जो खण-लब-मुहूर्त्त पडिबुज्झमाणादिगुणजुत्तो सो भुवजोगी । जो क्षण, लव, मुहूर्त - प्रतिपल जागरूकता आदि गुणों से युक्त होता है, वह ध्रुवयोगी है।
( दर्शजिचू. पू. ११७)
( दशजिचू. पू. ३४१ )
( सूचू. १ पृ. १०९ )
(आचू. पू. २८१)
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ध्रुवमग्ग-ध्रुवमार्ग। धुवमग्गो णाम संजमो विरागमग्गो वा । संयम अथवा वैराग्य का मार्ग ध्रुवमार्ग है। नगर - नगर। ण एत्थ करो विज्जतीति नगरै ।
जहां कर नहीं लगता, वह नकर- नगर है। नरम-नरक । नयन्ते तस्मिन् पापकर्मा स्वकर्मभिरिति नारकाः । जिसमें पापी अपने कर्म से ले जाए जाते हैं, वे नरक हैं। नाग- नाग । न तेषां किञ्चिज्जल थलं वा भगम्यमिति नाग।
( उचू. पृ. १३८ )
जिनके लिए जल या स्थल कुछ भी अगम्य नहीं रहता, वे नाग (नागकुमार देव ) हैं । (सूचू. १ १. १४८ )
नाहियादि - नास्तिकवादी नास्त्यात्मा एवं वदनशीलः नाहियवादी । जो आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता, वह नास्तिकवादी है। ( दचू. पू. ३६) निगमण – निगमन, उपसंहार । पतिष्णाए पुणो वयणं निगमणं ।
प्रतिज्ञा का पुनर्वचन निगमन है।
(दश अचू. पृ. २०)
निण्हव - निह्नव । निण्हवो णाम पुच्छितो संतो सव्वा अवलवङ्ग । पूछने पर जो सर्वथा अपलाप करता है, वह निह्नव है। (दशजिचू. पृ. २८५) निषेसवत्ति - निर्देश का पालन करने वाला। निद्देसवत्तिमो नाम जमाणवेति तं सर्व्वं कुतीति निद्देसवत्तिणो । जो गुरु की आज्ञा का उसी रूप में पालन करते हैं, वे निर्देशवर्ती कहलाते हैं। (दर्शाजचू. पू. ३१४) निम्मम - ममत्वरहित। नास्य कलत्र- मित्र - वित्तादिसु बाह्याभ्यन्तरेषु वस्तुषु ममता विद्यते इति निर्मम । जिसको स्त्री, मित्र, धन आदि बाह्य वस्तुओं में तथा आभ्यन्तर परिग्रह में ममता नहीं है, वह निर्मम होता है । ( सूचू. १ पृ. १७६)