SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 691
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट ६ : कथाएं ने जाकर कुमार को सारी बात कही। कुमार बाहर आया। उसने ब्राह्मण वेश में वरधनु को पहचान लिया। दोनों ने परस्पर आलिंगन किया। दोनों अन्दर आ गए । स्नान- भोजन आदि से निवृत्त हो कुमार ने वरधनु से उसका वृत्तान्त पूछा। वरधनु ने कहा- 'उस रात आप दोनों रथ पर सो गए थे। मैं आगे बैठा था। एक चोर घनी झाड़ी में छुपा बैठा था। उसने पीछे से बाण मारा। मैं वेदना से पराभूत हो धरती पर गिर पड़ा। आप पर कोई आपत्ति न आ जाए इस भय से आवाज नहीं की। रथ आगे चला गया और मैं भी सघन वृक्षों को चीरता हुआ गाँव में पहुँचा, जहाँ आप थे । वहाँ के प्रधान से मैंने आपके विषय में सारी बात जान ली। मुझे अत्यन्त हुर्ष हुआ। ज्यों त्यों मैं यहां आया और आपसे मिलना हुआ।' दोनों अत्यन्त आनंद से दिन बिता रहे थे। एक बार दोनों ने विचार किया कि कितने दिन तक हम निठल्ले बैठे रहेंगे। हमें कोई उपाय ढूंढ़ना चाहिए। मधुमास आया। मदनमहोत्सव की बेला गर के सारे लोग क्रीडा करने उद्यान में गए। कतहलवश कमार और वरधन भी वहीं गए। सभी नर-नारी विविध क्रीड़ाओं में मग्न थे। इतने में हो मदोन्मत राज-हस्ती आलान से छूट गया। वह निरंकुश हो दौड़ पड़ा। सभी लोग भवभीत हो गए। भयंकर कोलाहल होने लगा। सभी क्रीड़ागोष्ठियाँ भंग हो गईं। इस प्रवृद्ध कोलाहल में एक तरुण स्त्री मत्तहाथो के भय से पागल की तरह दौड़ती हुई त्राण के लिए इधर-उधर देख रही थी। हाथी की दृष्टि उस पर पड़ी। चारों ओर हाहाकार होने लगा। स्त्री के परिवार वाले चिल्लाने लगे। कुमार ने यह देखा। उसने भयभीत तरुणो के आगे हो, हाथी को हांका । कुमारी बच गई। हाथी कुमारी को छोड़कर अत्यन्त कुपित हो, सूड को घुमाता हुआ, कानों को फड़फड़ाता हुआ कुमार की ओर दौड़ा। कुमार ने अपनी चादर को गेंद बना हाथी की ओर फेंका। हार्थी ने उसे रोष से अपनी सूंड में पकड़कर आकाश में उछाल दिया। वह धरती पर जा गिरा। हाथी उसे पुन: उठाने में प्रयत्नशील था कि कुमार शीघ्र ही उसकी पीठ पर जा बैठा और तीखे अंकश से उस पर प्रहार किया। हाथी उछला। तत्क्षण ही कमार ने मीठे वचनों से उसे संबोधित किया। हाथीं शान्त हो गया। लोगों ने यह देखा। चारों ओर से साधुवाद की ध्वनि आने लगी। मंगलपाठकों ने कुमार का जयघोष किया। हाथी को आलान पर ले जाया गया। कुमार ब्रह्मदत्त पास ही खड़ा रहा। राजा आया। कुमार को देखकर विस्मित हुआ। उसने पूछा- 'यह कौन है?' मंत्री ने सारी बात बताई। राजा प्रसन्न हुआ। कुमार को साथ ले वह अपने राजमहल में आया। स्नान, भोजन, पान आदि से उसका सत्कार किया। भोजन के पश्चात राजा ने अपनी आठ पत्रियाँ कमार को समर्पित की। शुभ मुहूर्त में विवाह-संस्कार सम्पन्न हुआ। कुमार कई दिन वहाँ रहा। एक दिन एक स्त्री कुमार के पास आकर बोली-'कुमार ! मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूँ।' कुमार ने कहा बोलो, क्या कहना चाहती हो? उस स्त्री ने कहा-'इसी नगरी में वैश्रमण नाय का सार्थवाह रहता है। उसकी पुत्री का नाम श्रीमती है। मैंने उसको पाला-पोषा है । यह वहीं बालिका है, जिसको तुमने हाथी से रक्षा की थी। हाथी के संभ्रम से बच जाने पर उसने तुम्हें जीवनदाता मानकर तुम्हारे प्रति अनुरक्ति दिखाई है। तुम्हारे रूप, लावण्य और कला-कौशल को देखकर वह तुम्हारे में अत्यन्त अनुरक्त है। तभी से वह तुम्हें देखती हुई स्तम्भित की तरह, लिखित मूर्ति की तरह, भूमि
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy