SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 658
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५६० नियुक्तिपंचक एक गांव दे देना।' करकंडु ने यह बात स्वीकार कर ली। उस ब्राह्मण-पुत्र ने अन्य ब्राह्मण-पुत्रों को अपने पक्ष में कर लिया कि इसको मारकर हम इंडा ग्रहण कर लेंगे। यह बात करकंडु के पिता ने सुनी। उन्होंने उस गांव से पलायन की बात सोची। वे तीनों कांचनपुर पहुंचे। कांचनपुर का राजा मर गया था। उसके कोई पुत्र नहीं था। राज-कर्मचारियों ने घोड़े को अधिवासित करके छोड़ा। वह घोड़ा नगर के बाहर सोए करकंडु के पास आया । वह करकंडु की प्रदक्षिणा करके खड़ा हो गया। नागरिकों ने देखा कि यह युवक लक्षणयुक्त है। उन्होंने जय-जयकार द्वारा उसको वर्धापित किया। नंदीतूर बजाया गया। वह भी जम्भाई लेते हुए खड़ा हुआ। वह विश्वस्त होकर घोड़े पर बैठ गया। उसने नगर में प्रवेश किया। यह चाण्डाल है' ऐसा सोचकर ब्राह्मणों ने उसको प्रवेश करने से रोका। तब करकंडु ने दंडरत्न हाथ में लिया। वह जलने लगा। जलते दंडे को देखकर ब्राह्मण भयभीत हो गए। उसने 'वाटधातक' चांडालों को ब्राह्मण बना दिया। उसका गृह माम अवकीर्णक था पर बाद में उसका नाम राजा करकंड प्रसिद्ध हो गया। एक दिन महाराज करकंडु के पास यह ब्राह्मणपुत्र आया और प्रतिज्ञा के अनुसार गांव की मांग की। करकंडु ने कहा कि जो तुम्हें रुचिकर हो वही गांव मैं तुम्हें दे सकता हूं। वह बोला--'मेरा घर चंपा जनपद में है अत: वहीं कोई गांव दे दीजिए।' तब करकंडु ने दधिवाहन को लिखा कि मुझे चंपा जनपद में एक गांव दे दें। मैं आपको इसके बदले अपने राज्य का यथेच्छित गांव या नगर दे दूंगा।' राजा दधिवाहन इस आज्ञापत्र से रुष्ट हो गए। उन्होंने सोचा यह दुष्ट मातंग अपनी शक्ति को नहीं पहचानता तभी उसने मुझे यह लेख लिखकर भेजा है, दूत ने सारा वृत्तान्त महाराज करकंडु को सनाया। यह बात सुनकर करकंड कुपित हो गया। उसने चंपा पर आक्रमण कर दिया। युद्ध प्रारम्भ हो गया। साध्वी पद्मावती को जब युद्ध का वृत्तान्त ज्ञात हुआ तो उसने सोचा कि व्यर्थ ही जनक्षय होगा अतः उसने युद्ध-भूमि में करकंडु को बुलाकर रहस्य खोल दिया कि तुम जिससे लड़ रहे हो वे तुम्हारे पिता हैं । करकंडु ने पालन करने वाले माता-पिता से पूछा तो उन्होंने यथार्थ बात बता दी। पता चलने पर भी करकंडु अभिमानवश युद्ध-भूमि से नहीं हटा तब साध्वी पद्मावती चंपानगरी में राजा दधिवाहन के प्रासाद में गई। ज्ञात होने पर दास-दासियां उनके चरणों में पड़कर रोने लगीं। राजा ने जब यह बात सुनी तो वह भी वहां साध्वी के पास आया और विधिवत् वंदना की। राजा ने गर्भ के बारे में पूछा तो साध्वी ने कहा- 'जो इस नगरी पर आक्रमण कर युद्ध कर रहा है, वही आपका पुत्र है।' राजा अपने पुत्र करकंडु के पास गया और प्रसन्नता से गले मिला। दोनों राज्य करकंड को देकर दधिवाहन प्रवजित हो गया। करकंड़ विशाल राज्य का सम्राट बन गया। __करकंडु गोकुल प्रिय था। उसके पास अनेक गोकुल थे। एक बार शरदकाल में वह गोकुल में गया और एक श्वेत हृष्ट-पुष्ट बछड़े को देखा। उसने गोपालक को आदेश दिया कि इस बछड़े की मां को न दुहा जाए। जब यह बड़ा हो जाए तब अन्य गायों का दूध भी इसे पिलाया जाए। गोपालों ने यह बात ध्यान से सुनो और वे उस बछड़े का यथादेश लालन पालन करने लगे। थोड़े दिनों में वह बड़े सींगों वाला तथा हृष्ट-पुष्ट शरीर वाला वृषभ बन गया। वह गुद्ध-कला में निपुण बन गया। एक बार राजा कार्यवश अन्यत्र गया। कुछ समय पश्चात् वह पुनः अपने राज्य में लौटा और गोशाला
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy