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________________ परिशिष्ट ६ : कथाएं ५६१ देखने गया। राजा ने उस हृष्ट-पुष्ट बैल के विषय में पूछा। गोपाल ने राजा को वह वृषभ दिखाया। राजा ने उस महाकाय बैल को जीर्ण-शीर्ण अवस्था में देखा। उसकी आंखें धंस गई थीं। पैर लड़खड़ा रहे थे। वह छोटे-बड़े बैलों से सताया जा रहा था। राजा ने पूछा-'क्या यह वही वृषभ है?' गोपालक बोले-'राजन् ! यह वही वृषभ है। उसे देख राजा करकंडु विषण्ण हो गया। वह संसार की अनित्यता से संबुद्ध होकर प्रवजित हो गया।' ५०. हिर्मुख भरतक्षेत्र में कांपिल्यपुर नामक नगर था। वहां हरिवंश कुल में उत्पन्न राजा का नाम जय और उसकी पटरानी का नाम गुणमाला या। एक बार रावा आस्थानमंडप में बैठा था। उसने दूत से पूछा-'ऐसी क्या वस्तु है जो अन्य राजाओं के पास है और मेरे पास नहीं है?' दूत ने कहा--'आपके राज्य में चित्रसभा नहीं है। राजा ने तत्काल बढ़ई को बुलाया और शीघ्र ही चित्रसभा के निर्माण की आज्ञा दी। बढ़ई ने कार्य प्रारम्भ कर दिया। पृथ्वी की खुदाई करते हुए पांचवें दिन रत्नमय देदीप्यमान महामुकुट निकला। कर्मकरों ने हर्ष के साथ राजा को यह सूचना दी। राजा ने प्रसन्न होकर नंदी वाद्य बजाकर मुकुट को धरती से ऊपर निकाली तथा कर्मकरों को वस्त्र आदि पुरस्कार में दिए। थोड़े ही दिनों में चित्रशाला का कार्य पूरा हो गया। शुभमुहूर्त में राजा ने चित्रशाला में प्रवेश किया। मंगल वाद्य-ध्वनि के साथ राजा ने मुकुट को अपने मस्तक पर धारण किया। उस मुकुट के प्रभाव से उसके दो मुख दिखाई देने लगे। लोगों ने उसका नाम द्विमुख रख दिया। कुछ काल बीता। राजा के सात पुत्र हुए पर पुत्री एक भी नहीं हुई। पुत्री के अभाव में गुणमाला अधीर और उदास हो गई। उसने मदन नामक यक्ष की आराधना से वरदान प्राप्त किया। उसके एक पुत्री हुई, जिसका नाम मदनमंजरी रखा गया। क्रमशः मदनमंजरी यौवन को प्राप्त हुई। उज्जयिनी के राजा चंडप्रद्योत ने जय राजा के द्विर्मुख होने की बात सुनी। उसने अपने दूत से इसका कारण पूछा। दूत ने उसे चमत्कारी मुकुट की बात बताई, जिसको धारण करने से राजा दो मुंह वाला बन जाता था। प्रद्योत के मन में मुकुट को प्राप्त करने का लोभ बढ़ गया। दूत ने द्विमुख राजा से कहा--'या तो आप अपना मुकुट चण्डप्रद्योत राजा को समर्पित करें अथवा युद्ध के लिए तैयार हो जाएं।' राजा द्विर्मुख ने कहा-'यदि चण्डप्रद्योत मुझे चार वस्तुएं दे तो मैं उसे मुकुट दे सकता हूं। (1) अनलगिरि हाथीं, (2) अग्निभीरू रथ, (3) रानी शिवादेवी, (4) लोहजंघ लेखाचार्य । ये चारों प्रद्योत के राज्य की निधियां थीं। दूत उज्जयिनी गया और प्रद्योत को सारी बात बताई। प्रद्योत अत्यन्त कुपित हुआ और चतुरंगिणी सेना के साथ कांपिल्यपुर पर आक्रमण के लिए प्रस्थान कर दिया। उसके साथ दो लाख हस्तिसेना, दो लाख रथसेना, पचास हजार अश्वसेना तथा सात करोड़ पदातिसेना थी। अनवरत चलते-चलते वह अपनी सेना के साथ पांचाल देश की सीमा पर पहुंच गया। प्रद्योत ने सेना का पड़ाव डाला। द्विर्मुख भी अपनी चतुरंगिणी सेना के साथ नगर के बाहर आ गया और पांचाल देश की सीमा पर पहुंचा। प्रद्योत ने गरुड़व्यूह की रचना की थी। उसके प्रतिपक्ष में १. उनि. २५९-६१, उशांटी.प, ३००-३०३, उसुटी. प. १३३-१३५ ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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