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________________ ४८३ परिशिष्ट ६ : कथाएं अन्य वेशधारी मूलदेव बोला- 'हे कदलीपत्रों से वेष्टित नारी ! इसका उत्तर यह है कि जो जोर से गर्जता है, उसका अस्तित्व मुहूर्त मात्र का ही होता है। तब मूलदेव ने वणिक् से कहा - 'देख लिया, तुम्हारी स्त्री धूर्त हैं।' वह वणिक मूलदेव के साथ प्रातः घर से चला गया और कुछ समय पश्चात् अपने घर आ गया। वह स्त्री सहसा अपने पति को घर आया देखकर संभ्रात होकर उठी। इसके बाद भोजन आदि करते समय वणिक् ने गीत गाने तक की सारी बात उसे याद दिला दी। २२. लोक का मध्य एक परिव्राजक घूमता रहता था। वह यह प्ररूपणा करता था कि समक्षेत्र में दिया गया दान आदि सफल होता है, इसलिए समक्षेत्र में दान करना चाहिए। मैं लोक का मध्य भाग जानता हूं, दूसरा कोई नहीं जानता। लोग उसका बहुत आदर-सत्कार करते थे। जब उसे लोक का मध्य पूछा जाता तब चारों दिशाओं में कीलें गाड़कर और रस्सी से मापकर वह मायावी कहता - ' यह लोक का मध्य है ।' लोग विस्मित होकर कहने लगते - 'आश्चर्य है, इन्होंने लोक का मध्य जान लिया है।' वहां एक श्रावक रहता था। उसने सोचा- 'यह धूर्त लोगों को कैसे ठग रहा है?' मैं भी इसके साथ वंचनापूर्वक व्यवहार करूं।' ऐसा निश्चय कर श्रावक ने उसे कहा- भाई! यह लोक का मध्य भाग नहीं है, तुम भ्रांत हो गए हो। ' तत्पश्चात् उस श्रावक ने रस्सी से मापकर दूसरे स्थान को लोक का मध्य भाग बताया। लोग प्रसन्न हो गए। श्रावक ने उस परिव्राजक को निरुत्तर कर दिया। २३. शकटतित्तिरी एक ग्रामीण काठ से गाड़ी भरकर नगर में जा रहा था। रास्ते में उसने एक मरी हुई तित्तिरिका देखी । वह उसे गाड़ी के ऊपर रखकर नगर में गया। वहां एक नगर धूर्त ने उसको के द्वारा '' पूछा- 'यह शकट - तित्तिरी कितने में मिल सकती है?' ग्रामीण बोला- 'मध्यमान सत्तुक वह धूर्त मध्यमान सत्तुक देना स्वीकार कर लोगों को साक्षी बना तित्तिरी सहित शकट ले जाने लगा। अब वह ग्रामवासी दुःखी होकर बैठ गया। इतने में उधर से मूलदेव जैसा कोई व्यक्ति आया । वह बोला- ' अरे देवानुप्रिय ! क्या सोच रहे हो ? ' ग्रामीण ने बताया कि मुझे एक व्यापारी ने इस प्रकार ठग लिया है। वह बोला- 'डरो मत। तुम उपचार से मध्यमान सतुक मांगो।' इसके बाद . उसने ग्रामीण को कैसे माया करनी है सिखा दिया। 'ऐसा ही होगा' यह कहकर वह ग्रामीण उस धूर्त के पास गया। वहां जाकर वह बोला- 'यदि तुमने मेरा शकट ले लिया है तो अब सोपचार मध्यमान सत्तुक तो दिलाओ।' अच्छा कहकर वह धूर्त उसे अपने घर ले गया और अपनी स्त्री को आदेश दिया कि वह आभूषणों से अलंकृत होकर परम विनय से इसको मध्यमान सत्तुक दे। कहने के साथ ही वह आ उपस्थित हुई। शाकटिक बोला 'मेरी अंगुली कटी हुई है, इस पर पट्टी बंधी हुई हैं इसलिए मैं सत्तू को मध नहीं सकता। तुम मथकर दे दो।' यह सुनकर उस स्त्री ने मधिका हाथ में ली। ग्रामीण उसे हाथ से पकड़ अपने गांव की ओर जाने लगा। उसने लोगों से कहा-'मैं १. दर्शन. ८४ अचू. पू. २८, हाटी. प. ५७,५८ । २. दशनि. ८४, अचू. पृ. २८, हाटी. प. ५८, ५९ ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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