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मियुक्तिपंचक
घूमता था । वह कहता था कि जो मुझे असुनी बात सुनाएगा उसे मैं यह स्वर्ण-खोरक दे दूंगा। एक श्रावक ने यह घोषणा सुनी । उसने परिधाजक से कहा---
तुझ पिया मम पिउणी, धारेई अणुणयं सयसहस्सं ।
जह सुयपुष्व दिज्जउ, अह न सुयं खोरयं देहि । तुम्हारे पिता ने मेरे पिता से लाख रुपए उधार लिए थे। यह बात तुम्हारी सुनी हुई है तो वे रुपए लौटा दो और यदि नहीं सुनी हुई है तो यह स्वर्ण स्वोरक दे दो।' २०. हेतु उपन्यास
एक व्यापारी यव खरीद रहा था। दुसरे व्यक्ति ने पूछा--यवों को क्यों खरीद रहे हो? उसने कहा-'मे खरीदने से ही मिलते हैं, मुफ्त नहीं।' यद खरीदने का यह हेतु है ।' २१. धूतं पस्नी
एक वणिक अपनी स्त्री को साथ ले प्रत्यंत देश में चला गया। प्रत्यंत देश में वे जाते हैं जो दरिद्र हैं, भाग्यहीन हैं, अपराधी हैं अथवा जो विपरीत कलाओं में निष्णात् है । वणिक् की स्त्री कुलटा थी । वह एक पुरुष में आसक्त थी। उस बणिक पति को अपने बीच व्यवधान समझकर एक दिन वह बोली--'व्यापार करने के लिए जाओ।' वणिक् बोला-'क्या लेकर जाऊं?' बह बोली- डाः, (जय मागग) लेकर उज्जयिनी जाओ और एक एक दीनार में एक एक लिण्डिका को बेचो।' स्त्री का अभिप्राय यह था कि वणिक लम्बे समय तक वहीं रह जाए।
वह बेचारा कंद के मींगनों से भरकर एक गाडी उज्जयिनी ले गया। बाजार में मींगनों का ढेर लगाकर ग्राहक की प्रतीक्षा करने बैठ गया पर किसी ने कुछ नहीं पूछा। अचानक वहाँ मूलदेव आ गया। उसने देखा और पूछा तो वणिक् ने सारी बात बता दी।
मूलदेव ने सोचा कि यह बेचारा अपनी पत्नी के द्वारा छला गया है। उसने कहा-'भाई ! मैं इन सबको बिकवा दूंगा यदि तुम आधा हिस्सा मुझे दे दो तो?' वणिक ने स्वीकार कर लिया। मूलदेव तब पिशाच का रूप बनाकर आकाश में उड़ गया। वह नगर के बीच में ठहरकर भोला-'मैं वेव हूं। जिस बच्चे के गले में उष्ट्र लिडिका बंधी हुई नहीं होगी उस बच्चे को मैं मार दूंगा।' तब सभी भयभीत लोगों ने एक एक दीनार में उष्ट्र-लिडिका खरीद ली। वणिक् का सारा माला बिक गया । उसने आधा हिस्सा मूलदेव को दे दिया ।
मूलदेव बोला-तेरी स्त्री तो किसी धूर्त से लगी हुई है, इसीलिए उसने तेरे साथ ऐसा व्यवहार किया है । वणिक् को विश्वास नहीं हुआ तो मूलदेव ने कहा-'आओ, हम वहां पलें । तुझे विश्वास न हो तो प्रत्यक्ष विखा देता हूं।'
ये दोनों वेष बदलकर वहां गए और विकाल का बहाना कर ठहरने के लिए स्थान मांगा। उस स्त्री ने स्थान दे दिया। वे एक ओर ठहर गए । कुछ समय पश्चात् घर में स्त्री उसके साथ मदिरापान करने लगी। इसी बीच में वह गाने लगी
'लक्ष्मी के मन्दिर का पुजारी मेरा पति वाणिज्य के लिए गया है वह सैकड़ों वर्षों तक जीए पर जीता हुआ घर न आए।' १. दशनि ८२, अचू पृ. २७, हाटी प. ५६ । २. दशनि ८२, अचू पृ. २८, हाटी प, ५६,५७ ।
नरमा
सात घर में बंटतं आया और