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________________ ४८४ नियुक्तिपंचक अपनी शर्त के अनुसार सतित्तिरीक शकट के बदले में यह सत्तुमथिका लेकर जा रहा हूं।' यह देखकर उस धूर्त ने शकट लौटा, ग्रामीण को राजी कर, अपनी स्त्री को छुड़ा लिया। २४. धूर्तता से धूर्तता का निरसन एक आदमी ककड़ी से भरी हुई गाड़ी लेकर नगर में गया। वहां उसे एक धूर्त मिला। वह बोला-'जो भारली इस ककरिडलों में भी गड़ो के रूप में तुम क्या दोगे?' गाड़ीवान् ने उस धूर्त से कहा-'मैं उसे इतना बड़ा लड्डू दूंगा जो इस नगर-द्वार से बाहर न निकल सके।' वह धूर्त बोला-'मैं तुम्हारे इस ककड़ी से भरे शकट को खा लेता हूं तुम मुझे वह लड्डू देना जो नगर के द्वार से न निकल सके।' शाकटिक की स्वीकृति मिलने पर उस धूर्त ने कुछ लोगों को साक्षी बनाया। इसके बाद वह शकट पर बैठा और उन ककड़ियों का एक-एक टुकड़ा खाता गया। इस प्रकार सभी ककड़ियों के टुकड़े खा लेने के पश्चात् उसने शाकटिक से मोदक मांगा। शाकटिक बोला- 'तुमने सारी ककड़ी नहीं खाई हैं।' भूर्त बोला-..' यदि नहीं खाई हैं तो तुम इनका विक्रय करो।' शाकटिक उन्हें बेचने के लिए बैठा। ग्राहक आए और उन खंडित ककड़ियों को देखा। ग्राहक बोले-'इन खाई हुई ककड़ियों को कौन खरीदेगा?' ऐसा कहने से यह प्रमाणित हो गया कि ककड़ियां खाई हुई हैं । शाकटिक हार गया। तब उस धूर्त ने अपना मोदक मांगा। बेचारा शाकटिक दुःखी हो गया। इसी बीच कुछ जुआरी उधर से निकले। उन्होंने शाकटिक को दु:खी जानकर दुःख का कारण पूछा तो शाकटिक ने सारी बात बता दी। उनमें से एक बोला—'तुम नगर-द्वार के बीच में एक छोटा सा मोदक रख दो और उसे द्वार में से बाहर निकलने के लिए कहो।' शाकटिक ने ऐसा ही किया। वह धूर्त से कहने लगा-'लो यह मोदक, यह नगर-द्वार से बाहर नहीं निकल रहा है। तुम इसे ले जाओ।' वह धूर्त पराजित हो गया। २५. दक्षता का उदाहरण (चार मित्र) राजकुमार, अमात्यपुत्र, श्रेष्ठिपुत्र और सार्थवाहपुत्र ये चारों मित्र थे। एक बार वे चारों एक स्थान पर मिले और आपस में पछने लगे कि कौन किस आधार से जीता है? राजपुत्र ने कहा- मैं अपने पुण्य के आधार पर जीता हूं। अमात्यपुत्र ने कहा--मैं अपने बुद्धिबल से जीता हूं। श्रेष्ठिपुत्र ने कहा-मैं अपने सौंदर्य से जीता हूं। सार्थवाहपुत्र ने कहा-मैं अपनी दक्षता से जीता हूं। अपने-अपने अभिमत की पुष्टि के लिए वे दूसरे नगर में गए जहां उनको कोई नहीं जानता था। वहां वे एक उद्यान में ठहरे। सबसे पहले सार्थवाह पुत्र की दक्षता का परीक्षण करने का निश्चय हुआ। उसको खाने-पीने की व्यवस्था करने का आदेश मिला। सार्थवाह पुत्र बाजार में जाकर एक बूढ़े वणिक् की किराने की दुकान के बाहर जाकर बैठ गया। उस दिन कोई बड़ा उत्सव था इसलिए १. दर्शान.८५, अचू.प. २८, हाटी.प. ५९.६०। २. दशनि. ८५, अचू.पृ. २९, हाटी.प. ६१ |
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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