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नियुक्तिपंचक
दिया । सुभद्रा ने सिन्दूर का तिलक लगा रखा था। वह मुनि की आंख से रजकण निकालते समय क्षपक के ललाट में लग गया। उपासिकाओं ने श्रावक को दिखाया। उसे विश्वास हो गया । अब वह उसके साथ पहले जैसा बर्ताव नहीं करता था।
सुभद्रा ने सोचा- मैं गृहस्थ हूं, मेरा अपमान हुआ है इसमें क्या आश्चर्य है? पर यह जिनशासन की अवहेलना मुझे दुःख दे रही है। उस राषि को वह कायोत्सर्ग करके लेट गई। देवता बाया और बोला- आशा दो, मैं क्या करू ?' सुभद्रा बोली- मेरा यह अपयश दूर कर दो ।'
देव ने स्वीकृति देकर कहा मैं इस नगर के चारों द्वार बंद कर दूंगा और घोषणा करूंगा कि जो पतिव्रता होगी वह इन दरवाजों को खोल सकेगी। वहां तू ही इन दरवाजों को अनावृत कर सकेगी। अपने परिवार वालों को विश्वास दिलाने के लिए चलनी से पानी निकालना, देव प्रभाव से एक बूंद भी नीचे नहीं गिरेगी, ऐसा आश्वासन देकर देव चला गया ।
देव ने रात्रि के समय नगर के द्वार बंद कर दिए। द्वार बन्द देखकर नगरवासी अधीर हो गए। सहसा आकाशवाणी हुई 'नागरिकों! निरयंक देश मत करो। यदि शीलवती स्त्री चलनी से पानी निकाल कर उस पानी से द्वार पर छोटे लगाएगी तो द्वार खुल जाएंगे।
नगर के अनेक श्रेष्ठियों और सार्थवाह की पुत्रियों तथा पुत्रवधुओं ने उस ओर चरण बढ़ाने का प्रयत्न भी नहीं किया तभी सुभद्रा ने अपने परिवार वालों से यह काम करने की अनुमति मांगी। वे भेजने के लिए राजी नहीं हुए। उपासिका ने कहा ओह! अब यह भ्रमण में आसक्त सुभद्रा द्वारों को खोलेगी! किन्तु जब सुभद्रा ने कुए के पास जाकर जलनी से पानी निकाला और एक बूंद भी पानी नीचे नहीं गिरा तो उपासिका सास विषण्ण हो गई । घर वालों को विश्वास हो गया। उसे जाने की अनुमति प्राप्त हो गई। वह घर से घसी उसके हाथ में पानी से मरी चलनी थी।
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महान् लोगों द्वारा सस्कारित सुभद्रा नगरद्वार के पास गई, अरिहन्त भगवान् को नमस्कार करके द्वार पर पानी के छींटे लगाए और तत्काल महान् शब्द करते हुए टीमों द्वार बुन गए। उत्तर का द्वार अभी भी बन्द था उस पर पानी के छीटे न लगाकर वह बोली 'जो मेरे जैसी भीतवती नारी होगी, वह इस द्वार को खोलेगी। कहा जाता है वह द्वार आज भी बन्द पड़ा है। नागरिक जन सुभद्रा का जयजयकार करते हुए बोले- 'बहो ! यह महासती है। हो! यह साक्षात् धर्म है । "
आर्या चन्दना का अनुशासन ( मुगावती )
प्रवजित होते ही साधी मृगावती आर्या चन्दना की शिव्या बन गई। एक बार भगवान् महावीर बिहार करते-करते कौशाम्बी नगरी पछारे चन्द्र और सूर्य अपने विमानों सहित भगवान् को नमन करने बाए | चतुष्णौदिक समवसरण कर अस्मन मेला में वे लौट गए। उनके जाते ही मृगावती संभ्रान्त हो गई बोर समीपस्थ साध्वियों से बोली- 'अरे ! विकाल हो गया है ।' वह तत्काल वहां से उठी और साध्वियों के साथ बर्या चंदना के पास पहुंची। तब तक अन्धकार हो गया था। आर्या चन्दना आदि साध्वियों ने उस समय प्रतिक्रमण भी कर लिया था। आर्या कन्दना ने १. दशअ पृ २४, २५ हाटी प. ४६-४८ ।