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________________ परिशिष्ट ६ ४७७ ६. उपाय से अपाय का निवारण (गांधविक) एक ग्राम में एक वणिक रहता था। उसके घर में बहुत सी बहन, बेटियां और बहुएं थीं। उसके घर के पास ही राजकुल से सम्बन्धित (संगीत के आचार्य) गान्धर्विक दिन में तीन बार संगीत करते थे। वे घर की स्त्रियां संगीत के मधुर शब्दों द्वारा गोधर्तिकों में आसक्त हो गई अतः वे समय पर कुछ भी काम नहीं करती थी। उस बणिक ने सोचा कि येत. विनष्ट हो रही है। अब ऐसा कौन सा उपाय किया जाए जिससे ये कुल-परम्परो को अक्षुण्ण रखें। यह सोचकर उसने अपने एक मित्र को सारी बात बताई। मित्र बोला-'तुम अपने घर के पास व्यन्तरदेव का मंदिर बनवा लो।' उसने वैसा ही किया और पह बजाने बालों को एपमा देकर मह बजवाने लगा । गान्धर्विक जिस समय संगीत करते उस समय वे पटहवादक पटह, बांसुरी आदि बजाते और साथ-साथ गायन आदि भी करते 1 इससे गांधषिकों के संगीत में विघ्न होने लगा। पटह शब्द के कारण मीत शब्द सुनाई नहीं देते थे अतः उन गांधविकों ने राजा के समक्ष शिकायत की। राजा ने उस वणिक को बुलाकर पूछा-'तुम इनके काम में विघ्न क्यों करते हो?' वह बोला-'मेरे घर में एक देव-मंदिर है 1 मैं तीनों समय पूजा के लिए पटह बजाता हूं और कुछ नहीं करता। तब राजा ने कहा-'गांधविकों ! तुम अन्यत्र जाकर संगीत करो। प्रतिदिन देव-पूजा में बाधा क्यों डालते हो? गांधविक वहां से चले गए। घर की बहु-बेटियां अपनी मूल स्थिति में आ गई ।' है. सुभद्रा का शील चंपा नामक नगरी में सुश्रावक जिनदत्त के सुभद्रा नामक लड़की थी । वह अत्यन्त रूपवती थी। एक बौद्ध उपासक ने उसे देखा । वह उसमें आसक्त हो गया। उसने जिनदत्त से सुभद्रा की याचना की । जिनदत्त बोला-'मैं मिध्यादष्टि को अपनी पुत्री नहीं दूंगा।' यह सुनकर वह बौद्ध उपासक साधुओं के पास गया और धर्म की बात पूछी 1 साधुओं ने धर्मदेशना दी । उसने कपटपूर्वक श्रावकधर्म को स्वीकार कर लिया। उसने साधुओं को बता दिया कि मैंने उस लड़की के लिए कपटपूर्वक धर्म ग्रहण किया था । अब मुझे अणुव्रतों का स्वीकरण करा दो। अणुव्रत स्वीकार करने के बाद वह लोक में स्पष्ट रूप से श्रावक हो गया। समयान्तर में 'यह श्रावक है ऐसा जानकर जिनदत्त ने सुभद्रा का उसके साथ विवाह कर दिया । कुछ समय बाद वह बोला-'मैं लड़की को अपने घर ले जाऊंगा ।' तब जिनदस बोला'तुम्हारा सारा कुल उपासक है, यह उसका अनुवर्तन नहीं करेगी तो अपमान होगा अतः तुम इसे वहां मत ले जाओ । अत्यन्त आग्रह करने पर जिनदत्त ने सुभद्रा को उसके साथ भेज दिया। वह उसे लेकर घर गया और अपना अलग घर बनाकर रहने लगा । सुभद्रा भिक्षुओं (बौद्ध श्रमणों) की भक्ति नहीं करती है यह जानकर उसकी सास और ननद उससे द्वेष करने लगी। एक बार उन्होंने सुभद्रा का पति से कहा कि यह सुभद्रा श्वेतपटधारी (जैन मुनि) से संसक्त है। श्रावक ने उनकी बात पर कोई विश्वास नहीं किया। एक दिन एक मुनि उसके घर भिक्षा लेने आए । मुनि की आंख में रजकण गिर गया था। सुभद्रा ने अपनी जीभ से उस रज कण को निकाल १.शनि ६५, अच प्र. २४,हाटी प.४५ ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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