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________________ नियुक्तिपंचक बोला कि एक शर्त पर मैं तुझे छोड़ सकता हूं कि जिस दिन तुम्हारा विवाह हो, उसी सुहागरात्रि में पति द्वारा अनुपभुक्त ही तुम मेरे पास आओ। बुद्धकुमारी ने शतं स्वीकार कर ली। माली ने उसको छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद उसका विवाह हो गया । वह सुहागरात्रि में अपने अपवरक (ओरा) में गई और पति को सारी बात बता दी। पति ने उसे माली के पास जाने की अनुमा दे दी । मार्ग में जाते समय उसको चोरों ने पकड़ लिया। सारी स्थिति समझाने पर चोरों ने भी उसे छोड़ दिया। आगे एक राक्षस मिला जो छह महीनों से आहार लेता था | उसने वृद्धकुमारी को पकड़ लिया । सही बात बताने पर राक्षस ने भी उसे छोड़ दिया । वह माली के पास पहुंच गई। माली ने सवा और विस्मित होकर बोला—'कैसे आई हो ?' बद्धकुमारी ने शतं की बात याद दिलाई तब माली ने पूछा--'तुझे तेरे पति ने कैसे भेज दिया ?' बुद्धकुमारी ने सारी बात सुना दी। मानी सोचने लगा-'यह महिला कितनी सत्यप्रतिज्ञहै?' इसने व्यक्तियों ने इसे छोड़ दिया है तो फिर मैं इसको दुषित कैसे करूं यह सोचकर उसने भी उसे मुक्त कर दिया। घर लौटते समय भी यह राक्षस और चोरों के मध्य होती हई गजरी पर उसकी सत्यता से प्रसन्न होकर सबने उसे छोड़ दिया। वह अपने पति के पास अक्षत आ गई। कथानक सुनाकर अभयकुमार ने पूछा-'बोलो, इस कथानक में सबसे कठिन काम किसने किया?' ईर्ष्यालु बोले"उसके पति ने।क्षधार्स बोले-राक्षस ने'। पारदारिक बोले-मालाकार ने और वह हरिकेश चांडाल बोला—'चोरों ने।' अभयकुमार ने समझ लिया कि यह चोर है। उसे पकड़कर राजा के सामने उपस्थित कर दिया । राजा ने चोरी का कारण पूछा तो उसने सब कुछ सही-सही बता दिया। राजा बोला'यदि तुम अपनी विद्याएं मुझे सिखा दो तो प्राण बण्ड नहीं मिलेगा। चण्डाल ने स्वीकृति दे दी और विद्या का रहस्य समझाने लगा। राजा के कोई बात समझ में नहीं आई तो उसने कहा'विद्या सिद्ध क्यों नहीं हो रही है?' चाण्डाल सोला---'राजन् ! आप आसन पर बैठे हैं और मैं नीचे भूमि पर। इस प्रकार अविनयपूर्वक पड़ने से विद्या नहीं आती है।' राजा तत्काल नीचे बैठ गया। दोनों विधाएं सिद्ध हो गई। ७, हिंगुशिव एक नगर में एक मालाकार रहता था। एक दिन वह करण्डक में फूल' लेकर बेचने को निकला। रास्ते में मलोत्सर्ग की आशंका से पीड़ित हो गया। उसने वहां शीघ्रता से उत्सर्ग कर करण्डक के सारे फूल उस पर डाल दिए । लोगों ने देखा और पूछा-'यह क्या है ? जो तुम इस प्रकार फूल बढ़ा रहे हो ?' ____ मालाकार बोला-देवता ने मुझे दर्शन दिए हैं। यहां अभी हिंगुभिव नामक व्यन्तर देव उत्पन्न हुआ है। लोगों ने उसकी बात स्वीकार कर ली और वे भी उसकी पूजा करने लगे। आज भी पाटलिपुत्र में हिगुशिव व्यन्तर का मंदिर प्रसिद्ध है।' १. दशनि ५८, अचू पृ. २२,२३, हाटी प. ४१,४२ । २. दशनि ६३, अचू पृ. २४, हाटी प. ४४ ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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