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________________ परिशिष्ट ६ साध्वी मृगावती को उपालम्भ देते हुए कहा-'उत्तम कुल में पैदा होकर भी तुम ऐसा करती हो ? गा नया है।' साध्वी मृगावती उनके घरों में गिरकर अत्यन्त विनम्रता से क्षमा मांगने लगी । वह बोली-'करुणाई हृदये ! मेरा यह अपराध क्षमा कर दें। मैं ऐसा फिर कभी नहीं करूंगी।' उस समय आर्या चन्दना संस्तारक पर लेटी हुई थी। मृगावती पास में बैठी थी । परम संवेग को प्राप्त होने से उसे केवलज्ञान उत्पन्न हो गया। रात बीसती गई और अन्धकार बढ़ता गया। दोनों के मध्य से एक सर्प आ रहा था। उस समय प्रवर्तिनी चन्दना के प्रलम्बमान हाय को मृगावती ने उठाया । चन्दना जाग गई और बोली'ऐसा क्यों?' मुगावती ने उत्तर दिया - कोई सर्प की जाति आ रही है। चन्दना-तुमने कैसे जाना? क्या कोई अतिशय जान हआ है? मगावती-हां। चन्दना-ज्ञान प्रतिपाति है या अप्रतिपाति ? मगावती–अप्रतिपाति । आर्या चन्दना ने मुगावती साध्वी से अमायाचना की। ११. कृत्रिम चक्रवर्ती (कोणिक) राजा कोणिक ने भगवान से पूछा-भंते ! काम-भोगों का त्याग नहीं करने वाले चक्रवर्ती राजा कालमृत्यु को प्राप्त कर कहाँ उत्पन्न होते हैं ? भगवान् ने कहा---पक्रवसी सातबी नरक भूमि में उत्पन्न होते हैं। कोणिक-भगवन् ! मैं कहां उत्पन्न होऊंगा? भगवान्-ट्ठी नरक भूमि में । कोणिक-मैं सातवीं नारकी में क्यों नहीं जाऊंगा? भगवान् सातवीं नारकी में चक्रवर्ती उत्पन्न होते हैं। कोणिक-मेरे पास भी चौरासी लाख हाथी हैं, मैं चक्रवर्ती कसे नहीं है? भगवान तुम्हारे पास निधियां और रत्न नहीं हैं। यह सुनकर महाराज कोणिक कृत्रिम रत्न बनवाकर दिग्विजय के लिए निकले। जब वे तमिना गुफा में प्रवेश करने लगे तो किरिमालक देव ने कहा---'बारह चक्रवर्ती हो चुके हैं। तुम यह काम करोगे तो विनष्ट हो जाओगे ।' रोकने पर भी वह नहीं रुका। फिरिमालक देव ने उस पर प्रहार किया और वह मरकर छट्ठी नरक भूमि में उत्पन्न हुआ। १२. आश्वासन (गौतम और महायोर) जब गोतम स्वामी अपने द्वारा दीक्षित मुनियों को केवली पर्याय में देखकर अधीर हो गए तब भगवान बोले--'गौतम ! तुम मेरे चिरसंसृष्ट हो, चिरपरिचित हो और घिरभावित हो । तुम अधीर मत बनो, अन्त में हम दोनों समान हो जाएंगे।" १ दशनि ७२, अच पृ. २५ हाटी प. ४९,५०। ३. दशनि ५४, अचू पृ. २६, हाटी प. ५१, २. दशनि ७४, अचू पृ. २६, हाटी प. ५०.५१। विस्तार के लिए देखें उनि कथा सं० ५३ ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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