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________________ नियुक्तिपंधक १८६. द्रव्य आई के उदाहरण ७ उदकाई-पानी से मिट्टी आदि द्रश्य को आद्रं करना । • साराई–बाहर से शुष्क तथा मध्य में आई, जैसे-श्रीपर्णी फल । • छविआई-स्निग्ध त्वचा वाले द्रव्य, जैसे-मुक्ताफल, रक्त अशोक आदि। ० वसाई वसा- चर्बी से आई। • इलेषाद्र-स्तंभ, कुड्य आदि बज लेप से लिप्त । . भावाई-राम भाव से आई। १५७. द्रव्याद्रं के तीन प्रकार ये भी है• एकभविक-जीव स्वर्ग से आकर यहां मनुष्य भव में आर्द्रकुमार के रूप में उत्पन्न होगा। • बद्धायुष्क-जिसने आर्द्रकुमार के रूप में उत्पन्न होने का आयुबंध कर लिया है। ० अभिमुखनामगोत्र-जो अनन्तर समय में ही आईक रूप में उत्पन्न होगा। १८८. आर्द्रकपुर में आई राजा का पुत्र आईक नाम वाला था। वह अनगार बना । इसलिए आद्रक से समुत्पन्न इस अध्ययन का नाम आर्द्रकीम हुआ।' १८९. द्वादशांग रूप जिनवचन शाश्वत है, महान् प्रभाव वाला है। इसी प्रकार सभी अध्ययन तथा सर्वाक्षर-सन्निपात भी शाश्वत है, प्रभावशाली हैं। १९.. सवपि राष्ट्र व्यार्थतः शामत है, फिर भी इसका अर्थ उस-उस समय में, उस-उस काल में भाविर्भूत होता है। पहले भी यही प्रकरण, किसी दूसरे नाम से प्रतिपादित तथा अनुमत हुआ है, जैसे-ऋषिभाषित, उत्तराध्ययन आदि में । १९१. आईक अनगार ने गोशालक, भिक्षु, ब्रह्मवती, त्रिदण्डी तथा हस्तितापसों को जो कहा, उसी को मैं यहां कहूंगा। १९२. बसन्तपुर नामक गांव में सामयिक नाम का गृहपति अपनी पत्नी के साथ धर्मपोष आचार्य के पास प्रवजित हुआ। उसने अपनी पत्नी साध्वी को भिक्षा के लिए जाते देखा और पूर्वक्रीडित क्रीड़ाओं की स्मृति हुई। साध्वी भक्त-प्रत्याख्यान द्वारा पंडित मरण कर देवलोक में देवरूप में उत्पन्न हुई । (वहां से बसन्तपुर नगर में एक सेठ के घर पुत्री रूप में उत्पन्न हुई)। १९३. मुनि को संवेग उत्पन्न हुआ। उसने मायापूर्वक भक्त प्रत्याख्यान किया और मरकर देवलोक में उत्पन्न हुआ। वहां से च्यवन कर आई कपुर नगर में आई राजा के पुत्र के रूप में उत्पन्न हुआ । उसका नाम आर्द्र ककुमार रखा गया। १९४-२०१. एक बार आककुमार के पिता ने प्रीतिवश महाराज श्रेणिक के पास उपहार भेजा। आईककुमार ने पूछा-क्या श्रेणिक के कोई पुत्र हैं ? ज्ञात होने पर उसने भी उपहार भेजा। अभयकुमार ने पारिणामिकी बुद्धि से जान लिया कि आर्द्रक कुमार सम्यग्दृष्टि है। उसने आर्द्रक कुमार के लिए प्रतिमा भेजी । आर्द्रककुमार को प्रतिमा देखते ही जातिस्मृति ज्ञान हुआ । वह संबुद्ध हो गया । वह प्रवजित न हो जाए, इसलिए राजा के आदेश से पांच सो राजपुत्र उसकी रक्षा करने लगे। वह अश्ववाहनिका के बहाने से पलायन कर गया। प्रख्या के समय देवता ने कहा-अभी १. देखें परि. ६, कथा सं५ ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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