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________________ मूत्रकृतांग नियुक्ति ३८३ दीक्षित मत बनो । देवता के कथन की अवमानना कर बाह प्रवजित हो गया। विहरण करते-करते वह बसन्तपुर नगर में आया और प्रतिमा में स्थित हो गया । पूर्वभव की पत्नी श्रेष्ठीपुत्री ने मुनि का वरण कर लिया। देवताओं ने हिरण्यवृष्टि की । राजा ने उस धन को ग्रहण करना चाहा, तब देवता ने निषेध किया। पिता ने उस हिरण्य का संगोपन कर रख लिया । उस दारिका का वरण करने के लिए अन्य लोग आए । लड़की ने अपने पिता से उन आगंतुकों के प्रयोजन के विषय में पूछा। पिता ने बात बताई । कन्या बोली-तात ! कन्या का विवाह एक बार ही होता है, दो बार नहीं। पिता ने पूछा- क्या तू अपने पति को पहचानती है ? उसने कहा-'मैं उनको पैरों के चिह्नों से जानती हूं।' मुनि का आगमन हुआ । दारिका ने पहचान कर अपने पिता से कहा। पश्चात् वह दारिका अपने परिवार के साथ प्रतिमा में स्थित मुनि के पास गई। मुनि ने उसे स्वीकार कर लिया। वह उसके साय भोग भोगने लगा । एक पुत्र उत्पन्न हुआ। आद्रक ने तब अपनी पत्नी से कहा-अब तुम पुत्र के साथ रहो। मैं पुनः प्रवजित होना चाहता हूं। पुत्र ने तब आईक को सूत से बांध दिया। सूत के बारह बंध थे। आर्द्रक उतने वर्षों तक घर में रहा, अवधि पूर्ण होने पर वह घर से निकल कर प्रवजित हो गया। वह एकाकी विहार करता हुआ राजगृह की ओर प्रस्थित हुआ। आर्द्रक राजकुमार के पलायन कर जाने पर, राजा के भय से ये पांच सौ रक्षक राजपुत्र अटवी में आकर चोर बन गए । अटवी में उन्होंने मुनि आईक को देखा। पूछा । वे सभी पांच सौ चोर प्रतिबुद्ध होकर प्रवजित हो गए । राजगृह नगर-प्रवेश पर आर्द्र क मुनि ने गोशालक, बोद्धभिक्षु, ब्रह्मवादी, त्रिवंडी तथा तापसों के साथ वाद किया । सभी वाद में पराजित हो गए । वे सभी उसकी शरण में आ गए । मुनि आईक सहित वे सभी परतीथिक भगवान् महावीर के पास आए और भगवान् के शासन में प्रवजित हो गए। (मनि आइक के दर्शन मात्र से एक मदोन्मत्त हाथी मुक्त होकर वन में चला गया। राजा द्वारा गजबंधन-मुक्ति के विषय में पूछने पर मुनि आईक बोले)-राजन् ! मनुष्य के पाश से बद्ध मदोन्मत्त हाथी का मुक्त होकर वन में चले जाना उतना दुष्कर नहीं है जितना दुष्कर है धागों से आवेष्टित मेरा विमोचन । मुझे यह दुष्फर प्रतीत होता है। सातवां अध्ययन २०२. अलं शब्द के चार निक्षेप हैं नाम अलं, स्थापना अलं, द्रव्य अलं और भाव अलं । २०३. अलं शब्द का प्रयोग तीन अर्थों में होता है(१) पर्याप्ति भाव-सामर्थ्य, जैसे- अलं मल्लो मल्लाय । (२) अलंकार—अलंकृत करने के अर्थ में अलंकृतं (देव महावीर ने शातकुस को अलंकृत किया)। (३) प्रतिषेध-अलं मे गृहवासेन-अब मैं गृहवास में रहना नहीं चाहता । २०४. प्रस्तुत में प्रतिषेधवाची अलं शब्द का प्रसंग है। नालंदा शब्द स्त्रीलिंगी है। नालन्दा राजगृह नगर का उपनगर था।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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