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सूत्रांग निर्बुक्ति
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१७६. केवली के अतिरिक्त प्राणी एक अथवा दो समय तक अनाहारक होते हैं।' केवती के समुद्घात के समय मन्यान के प्रारंभ में तथा उसके उपसंहार काल में (अर्थात् तीसरे तथा पांचवे समय में दो समय तथा लोक को पूरित करते हुए चौथे समय में अनाहारक होते हैं। इस प्रकार केवली तीन समय अनाहारक रहते हैं ।
१७७. शैलेशी अवस्था का कालमान है अन्तर्मुहूर्त । वह काल अनाहारक होता है। सिद्धावस्था सादे कि अनन्तकाल की होती है। सिद्ध अनाहारक होते हैं।
१७८. जीव सबसे पहले तेजस ओर कामंण शरीर से आहार ग्रहण करता है। तदनन्तर जब तक शरीर की निष्पत्ति नहीं हो जाती तब तक औहारिक free reवा वैक्रियमिश्र ने आहार ग्रहण करता है ।
१७९. परिक्षा शब्द के चार निक्षेप है—नाम स्थापना द्रव्य तथा भाव द्रव्यपरिक्षा के तीन प्रकार हैं- सचित्त, अचित तथा मिश्र । भावपरिक्षा के दो प्रकार है-परिक्षा तथा प्रत्याख्यान परिक्षा ।
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चौथा अध्ययन प्रत्यास्थानक्रिया
१८०. प्रत्याख्यान शब्द के छह निक्षेप है नाम प्रत्याख्यान स्थापना प्रत्याख्यान, द्रव्य प्रत्याख्यान, अदित्सा प्रत्याख्यान, प्रतिषेध प्रत्याख्यान तथा भाव प्रत्याख्यान ।
१५१ प्रस्तुत में भाव प्रत्याख्यान का अधिकार है। मूलगुण है-प्राणातिपात विरमण आदि प्राणातिपात आदि का प्रत्याख्यान करना आवश्यक है। यदि मूलगुण से संबंधित प्रत्याख्यान नहीं होता है तो उसके निमित्त से अप्रत्याख्यान क्रिया उत्पन्न होती है। (इसलिए प्रत्याख्यान क्रिया करनी चाहिए)।
पांचवा अध्ययन : आचारभूत
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१०२. आचार तथा श्रुतइन दोनों शब्दों के चार बार निक्षेप है नाम स्थापना, द्रव्य और भाव ।
१८३. आचार और श्रुत' का प्रतिपादन किया जा चुका है। अनाचार का सदा वर्जन करना चाहिए। अबहुश्रुत-अगीतार्थ की ही विराधना होती है। इसलिए सदाचार तथा उसके परिज्ञान में प्रयत्न करना चाहिए।
१०४. अनाचार का प्रतिषेध प्रस्तुत अध्ययन में प्रतिपादित है (अनगार सम्पूर्ण अनाचार का प्रतिषेध करता है) इसलिए इस अध्ययन का नाम 'अनगारचुत' भी है।
छठा अध्ययन आर्द्रकीय
१०५. 'जाई' शब्द के चार निक्षेप है-नाम आई, स्थापना आई, दव्य भाई तथा भाव
आर्द्र
१. तीन समय वाली अथवा चार समय वाली विग्रहगति की अपेक्षा से ।
२. आचार के वर्णन हेतु देखें दर्शानिया १५४-६१ ।
३. यु के वर्णन हेतु देखें-उनिया २९ । श्रुत