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________________ ३७३ सूत्रकृतांग नियुक्ति १३. जलमार्ग १४, आकाशमार्ग ।' १.१. फलकमार्ग-कीचड़ आदि के भय से फलक द्वारा पार किया जाने वाला मार्ग या गढ़ों को पार करने के लिए बनाया गया फलक मार्ग। २. लतामार्ग-नदियों में होने वाली ससाओं (वेत्र आदि) का आलंबन लेकर पार करने का मार्ग । जैसे गंगा आदि नदियों को वेत्र लताओं के सहारे पार किया जाता था। ३. आंदोलनमार्ग-यह संभवत: झलने वाला मार्ग रहा हो । विशेषतः यह मार्ग दुर्ग आदि पर बनाया हुआ होता था। व्यक्ति झूले के सहारे एक पहाड़ से दूसरे पहाड़ पर पहुंच जाता । व्यक्ति वृक्षों की शाखाओं को पकड़कर झूलते और दूसरी ओर पहुंच जाते। ४. बेनमार्ग... यह मार्ग नदियों को पार करने में सहायक होता था। जहां नदियों में वेत्र लताएं (बेंत की लताएं) सघन होती थीं, वहाँ पथिक उन लताओं का अवष्टम्न लेकर एक किनारे से दूसरे किनारे तक पहुंच जाता था। ५. रज्जुमार्ग-रस्सी के सहारे एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचने का मार्ग । यह अति दुर्गम स्थानों को पार करने के काम आता था। ६. दवनमार्ग-दवन का अर्थ है याम-वाहन । उसके आने-जाने का मार्ग दवनमार्ग है। सभी प्रकार के वाहनों के यातायात में यह मार्ग काम आता था । ७. बिलमार्ग-ये गुफा के आकार वाले मार्ग थे। इनको "मूषिक पय' भी कहा जाता था। ये पहाडी मार्ग थे, जिनमें चद्रान काट कर चूहों के बिल जैसी छोटी-छोटी सुरंगें बनायी जाती थीं। इनमें दीपक लेकर प्रवेश करना होता था । ८. पाशमार्ग....णिकार के अनुसार यह बह मार्ग है, जिसमें व्यक्ति अपनी कमर को रज्जु से बांधकर रज्जु के सहारे आये बढ़ता था। "रसकूपिका" (स्वर्ण आदि की खदान) में इसी के सहारे नीचे गहन अंधकार में उतरा जाता था और रज्जु के सहारे ही पुनः बाहर आना होता था। ९. कीलकमार्ग-ये वे मार्ग थे, जहां स्थान स्थान पर संभे बनाए जाते थे और पथिक उन खंभों के अभिज्ञान से अपने मार्ग पर आगे बढ़ता जाता था। ये खंभे उसे मार्ग भूलने से बचाते थे। विशेष रूप से ये मार्ग मरुप्रदेश में, जहां बाल के टीलों की अधिकता होती थी, वहां बनाए जाते थे । १०. अजमार्ग- यह एक ऐसा संकरा पथ होता था, जिसमें केवल अज (बकरी) या बछडे के चलने जितनी पगडंडी भाव होती थी। यह मार्ग विशेषतः पहाड़ों पर होता था। जहां बकरों और भेडों का यातायात होता या। इसे 'मेंढपथ" भी कहा जाता था। ११. पक्षिपथ--यह माकाश-मार्ग था । भारुण्ड आदि विशालकाय पक्षियों के सहारे इस मार्ग से यातायात होता था। वह मार्ग सर्वसुलभ न भी रहा हो परन्तु कुछ श्रीमन्त या विद्याओं के पारगामी व्यक्ति इन विशालकाय पक्षियों का उपयोग वाहन के रूप में करते हों, ऐसा संभव लगता है। १२. छत्रमार्ग-यह एक ऐसा मार्ग था, जहां छत्र के बिना आना-जाना निरापद नहीं होता था । संभव है यह जंगल का मार्ग हो और जहां हिंस्र पशुओं का भय रहता हो। वे पशु छत्ते से उरकर इधर-उधर भाग जाते हों। १३. जलमार्ग-जहाज, नौका आदि से याता यात करने का मार्ग, जिसे “वारिपथ" भी कहा जाता है। १४. आकाशमार्ग-चारणलन्धि सम्पन्न मुनियों, विद्याधरों तथा मंत्रविदों के आनेजाने का मार्ग। उसे "देवपथ" भी कहा जाता था। (सुटी पृ१३१)
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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