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________________ ३७४ नियुक्तिपंचक १०९. जिस क्षेत्र में जो मार्ग है, वह क्षेत्रमार्ग है। जिस काल में जो मार्ग है, यह कालमार्ग है । भावमार्ग के दो प्रकार है-प्रशस्तभावमार्ग, अप्रशस्तभावमार्ग। दोनों के तीन-तीन प्रकार हैं। प्रशस्तभावमार्ग के तीन प्रकार-सम्यज्ञान, सम्यगुदर्शन और सम्यग्चारित्र । अप्रशस्तभाव मार्ग के तीन प्रकार :-मिथ्यात्य, अविरति तथा अज्ञान । ११०, इन दोनों भागों का विनिश्चय फल से होता है । प्रशस्त मार्ग सुगतिफल वाला होता है और अप्रशस्त मार्ग दुर्गतिफल वाला । यही सुगतिफल वाला मार्ग प्रासंगिक है। १११. दुर्गतिफलवादियों के तीन सौ तिरसठ भेद हैं। (कियावादियों के १६०, अक्रियाबादिमों के ८४ अज्ञानवादियों के ६७ सय बगायकवादियों के ११) धगा व शिप (१) क्षेम-क्षेमरूप-से-चोर, सिंह आदि के उपद्रव रहित तथा वृक्ष आदि से आच्छन्न मार्ग । (२) क्षेम-अक्षेमरूप-जैसे—उपद्रवरहित किन्तु पथरीला, कण्टकाकीर्ण मार्ग । (३) अक्षेम-क्षेमरूप-जैसे-चोर आदि के भय से युक्त किन्तु सम मार्ग । ४) अक्षेम-अक्षेमरूप-जैसे-सिंह, चोर आदि के उपद्रव से युक्त तथा पथरीला और ऊबड़-खाबड़ मार्ग । भावमार्ग के चार विकसक्षेम-क्षेमरूप---शान मादि से समन्वित मुनि वेशधारी साधु । क्षेम-अक्षेमरूप--भाबसाधु द्रव्यलिंग से रहित । बक्षेम-क्षेमरूप-निल्लव ।। अक्षेम-अक्षेमरूप-परतीर्थिक, गृहस्थ आदि । ११२. ज्ञान, दर्शन और चारित्र-यह तीन प्रकार का भावमार्ग सम्यगदृष्टि व्यक्तियों द्वारा आचीर्ण है। चरक, परिव्राजक आदि द्वारा आचीर्ण मार्ग मिथ्यात्व मार्ग है, अप्रशस्त मार्ग है। ११३. जो व्यक्ति ऋद्धि, रस, साता-इन तीन गौरवों से भारीकर्मा हैं, जो षड्जीवनिकाय की बात में निरत हैं, वे कुमार्ग का उपदेश देते हैं और उसी कुमार्ग का आश्रय लेते हैं। ११४. तप और संयम में प्रधान तथा गुणधारी मुनि जो सद्भाव यथार्थ का निरूपण करते हैं. वह जगत् के सभी प्राणियों के लिए हितकारी है, वही सम्यक् प्रणीत मार्ग है। ११५. मोक्षमार्ग के ये तेरह एकार्थक शब्द हैं १. पंथ–सम्यकत्व की प्राप्ति । २. न्याय–सम्यक्चारित्र की प्राप्ति । ३. मार्ग-सम्यग्ज्ञान की प्राप्ति। ४. विधि- सम्यग्ज्ञान और सम्यग्दर्शन की युगपद प्राप्ति। ५. धृति-सम्पदर्शन के होने पर सम्पग्धारित्र की प्राप्ति । १. असियसयं किरियाणं, अकिरियवाईण होई चुलसीई । अण्णाणिय ससट्ठी, श्रेणइयाणं च बत्तीसं ।। (सूटी. पृ. १३१)
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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