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________________ उत्तराध्ययननिर्मुक्ति २२५ ४८१. प्रस्तुत अध्ययन में इच्छा आदि साम का आचरण वर्णित है, इसलिए इसका नाम सामाचारी अध्ययन है। सत्तावीसवां अध्ययन : लुकीय ४५२, ४६३, खक शब्द के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रव्य के दो भेद है - आगमतः, . नो-आगमतः । नो-आगमत के तीन भेद हैं- ज्ञशरीर, भव्यशरीर, तद्द्व्यतिरिक्त । तद्व्यतिरिक्त खलंक में बैल, अभय आदि हैं। यह द्रव्य खलुंकता है । समग्र पदार्थों में जो प्रतिकूलता है, यह भाव खलंकता है। ४८४. द्रव्य खलंक बेल के अनेक प्रकार हैं- (१) अवदारी बैल गाड़ी को तोड़नेवाला अथवा अपने स्वामी को मार डालने वाला । (२) उसक बैल -- यत्किचित् देखकर चौंकने वाला | (३) योत्रयुगभजक - जोती और जुआ को तोड़ने वाला । (४) लोभक चाबुक आदि को तोड़ने वाला | (५) उत्पथ - विपथगामी - उन्मार्ग और विपथ में जाने वाला । ४८५,४६६. जिस द्रव्य मैं कुब्जता, कशाला, भारीपन, दुःखनामिता (अकड़न ) आदि होते हैं, यह द्रव्य की खलूंकता है। इसी तरह वक्र, कुटिल और गांठों से व्याप्त पदार्थ भी बलुंकता में आते हैं। कुछ पदार्थ चिरकाल से वक्र ही होते हैं और कुछ पदार्थों को वक्र किया जाता है। जैसेकरमर्दी (एक प्रकार का गुल्म) का काठ हाथी का अंकुश और वृन्त । कुछ पदार्थ सरल रूप में अनुपयोगी होते हैं. उन्हें कुटिल बनाया जाता है । · ४८७-८९. कुछ शिष्य वंश-मशक, जलौका तथा बिच्छू के समान होते हैं। वे भाव खलुंक है। तीक्ष्ण असहिष्णु मृदु-कार्य करने में अलस, खंड- क्रुद्ध, मार्दविक – अत्यन्त आलसी, के प्रत्यनीक, शाल दोष लगाने वाले, असमाधि पैदा करने वाले, पापाचरण करने वाले, कलहकारी गुरु ये सारे जिनशासन में खलंक कहे जाते हैं । जो विशुन, परपीड़ाकारी, गुप्त रहस्यों का उद्घाटन करने वाले हैं, दूसरों का परिभव करने वाले हैं, जो व्रत एवं शील से रहित हैं तथा शठ हैं - वे भी जिनशासन में खलंक माने जाते हैं । ४९०. इसलिए बलुंकभाव को छोड़कर पंडितपुरुष ऋजुभाव में स्वयं को नियोजित करे। अट्ठाईसवां अध्ययन : मोक्षमार्गगति ४९१,४९२. मोक्ष शब्द के चार निक्षेप हैं नाम स्थापना, द्वष्य और भाव । द्रव्य के दो भेद हैं- आगमतः, नो- बागमतः । नो-आगमत: के तीन भेद हैं- ज्ञशरीर, अव्यशरीर, तद्व्यतिरिक्त । तद्व्यतिरिक्त में कारागृह, बेड़ी तथा श्रृंखला आदि से मुक्त होना द्रव्यमोक्ष है । आठ प्रकार के कर्मों से मुक्त होना भावमोक्ष है । ४९३,४९४. मार्ग शब्द के चार निक्षेप - नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । व्य निक्षेप के दो भेद हैं- आगमतः, नो भागमतः । दो-आणमत: के तीन भेद हैं- शरीर, मध्यशरीर, तद्ध्यतिरिक्त |
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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