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नियुक्तिपंचक तदन्यतिरिक्त मार्ग में जलमार्ग, स्थलमार्ग आदि प्राप्त हैं । ज्ञान, दर्शन, धारित्र और तप-ये भावमार्ग हैं।
४९५,४९६. गति शब्द के चार निक्षेप हैं-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रव्य के दो भेद हैं-आगमतः, नो-आगमत. ! नो-आगमतः के तीन भेद हैं-शशरीर, भव्यशरीर, तद्व्यतिरिक्त । तवष्यतिरिक्त में पुद्गलगति का समावेश होता है। भाव गति के पांच प्रकार हैं-- नरकति, लियंञ्चति, मनुष्यगति, देवगति और मोक्षगति सिद्धिगति । यहां मोक्षगति का अधिकार है, इसलिए उसी का विस्तार है।
४९७. इस बार में मो, गोर कार्यात गनिए इस अध्ययन का नाम मोक्षमागंगति जानना चाहिए । उनतीसवां अध्ययन : सम्यक्त्व-पराक्रम
४९-५००. आदानपद के आधार पर इस अध्ययन का नाम सम्यक्त्व-पराक्रम है। इसका गौण नाम है-अप्रमाद । इसको बीतरागश्रत भी कहा जाता है। अप्रमाद शब्द के चार निक्षेप हैं - माम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रव्य के दो भेद है-आगमतः, नो-आगमतः। नो-आगमत के तीम भेद है-शशरीर, भव्यशरीर, तव्यतिरिक्त। तद्व्यतिरिक्त अप्रमाद उसे कहते हैं, जो शत्रजनों के प्रति बरता जाता है। अज्ञान और असंबर आदि में अप्रमाद रखना भावअप्रमाद है।
५०१,५०२. श्रुत शब्द के चार निक्षेप है-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रव्य के दो भेद है-आगमतः, नो-आगमतः । नो-आगमतः के तीन प्रकार है-शरीर, भध्यशरीर, तद्व्यतिरिक्त । तद्ध्यतिरिक्त सूत्र पांच प्रकार का है
१. ज--हंस आदि के अंगों से उत्पन्न सूत्र । २. बोंडष-कपास का सूत्र । ३. पासष-भेड़ आदि के ऊन का सूत्र । ४. बल्कज (वाकज)--सन का सूत्र | ५. कीटष-कीट की लाला से उत्पन्न सूत्र-पट्टसूत्र ।
५०३,५०४. भावभुत के दो प्रकार है-सम्यकश्रुत, मिश्यात । इस अध्ययन में सम्यक्त का अधिकार है। इसमें सम्यक्त्रुत और अप्रमाद का वर्णन किया हुआ है, इसलिए इसका नाम अप्रमादश्रुत है। तीसवां अध्ययन : तपोमार्गगति
५०५,५०६. तप शब्द के चार निक्षेप है.-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव । द्रष्य के दो भेद है-बागमतः, नो-आगमस: । नो-आगमत: के तीन भेद है-शरीर, भव्यशरीर, तद्व्यतिरिक्त । तव्यतिरिक्त तप में पंचाग्नि माथि सप माते हैं 1 भाव तप दो प्रकार का है-आध और आभ्यन्तर ।
५०७,५०८. मार्ग और गति शन के भी चार-चार निक्षेप हैं, जो पूर्व निर्दिष्ट हैं। प्रस्तुत प्रसंग में भावमार्ग--सिद्धिगति को जानना चाहिए। इस अध्ययन में दो प्रकार के तप तथा मार्ग और गति का वर्णन है इसलिए इस अध्ययन का नाम तपोमागंगति है।