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________________ ३३१. दशवकालिक नियुक्ति २९८, कायविनय के आठ भेदों का कथन । ३३०. अध्ययन में वर्णित गुणयुक्त भिक्षु ही भाव २९९. वाचिक और मानसिक विनय के भेदों का भिक्षु । उहलेख। केवल मिक्षा करने मात्र से मिल नहीं । ३००,३०१, प्रतिरूप और अप्रतिरूप विनय तथा ३३२. उहिष्टभोजी तथा हिंसक व्यक्ति भिक्ष अनाशातनाविनय के बावन प्रकार। कैसे? ३.२. विनय करने योग्य नेरह पदों का निर्देश ! वास्तविक भिक्षु की पहचान । ३०३. विनय के बावन भेदों का संकेत । प्रथम चूलिका व्यसमाधि और भावसमाधि का स्वरूप। ३३४. चूलिका शब्द के निक्षेप। ३३५. द्रव्यचूला तथा क्षेत्रचूला का स्वरूप । बसवां अध्ययन भावचूला का स्वरूप । ३०५ सकार शब्द के निक्षेप। ३३७. द्रव्यरति के भेदों का कथन । द्रव्य सकार का स्वरूप तथा अध्ययन के ३३८. द्रव्यरति और भावरति । अधिकारों का नियंत्र। कर्म के उदय से अति और परीवह सहन ३०७. भिक्षु कौन ? से निर्वृति-सुख की प्राप्ति । ३०७/१. 'सकार' का प्रशंसा के अर्थ में प्रयोग। ३४०. प्रपम चूलिका के नामकरण की सार्थकता । भिक्षु शब्द के निक्षेप, निरुक्त आदि पांच ३४१. रति नाम की सार्थकता। द्वारों का उल्लेख। धर्म में रति और अधर्म में अरति की गुणभिक्ष शब्द के निक्षेप । कारित।। ३१०. भेदक, भेदन और भेत्तव्य का निरूपण । मोक्ष-प्राप्ति के उपाय । ३११-३१५. व्यभिक्षु का स्वरूप । ३४४. रति-अरति के स्थानों को जानने का ३११/१. असाधु कौन ? निर्देश । ३१६. भावभिक्षु का स्वरूप । द्वितीय चलिका ३१७-३१९. भिक्ष शब्द के निरुक्त। दूसरी धूलिका के कथन को प्रतिज्ञा । ३२०-३२२. भिक्षु शब्द के एकार्थक । अवगहीत, प्रगृहीत आदि विहारचर्या का ३२३,३२४. भिक्षु की पहचान के तत्त्व । निर्देश। ३२५. भिक्षु को स्वर्ण की उपमा । मुनि की प्रशस्त विहारचर्या का उल्लेख ।। स्वर्ण के आठ गुणों का नामोल्लेख । ३४८, दशवकालिक का अध्ययन : मनक के ३२७. स्वर्ण की चार कसौटियां ।। समाधिमरण का कारण । ३२८,३२९. स्वर्ण की भांति गुणयुक्त व्यक्ति ही वास्तविक ३४९. दशवकालिक की रचना के प्रयोजन का साधु। निर्देश ।
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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