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________________ विजयानुक्रम २३६-२३९, संप्राप्त काम के चौदह और असंप्राप्त काम आठवां अध्ययन के दस प्रकारों का कथन। प्रणिधि शब्द के निरूप। २४०, धर्म, अर्थ और काम की परस्पर विरोधिता २७०. द्रव्य और भावप्रणिधि का उल्लेख । २४०१ अविरोधिता। इन्द्रियप्रणिधि का स्वरूप । २४१. श्रमण और धर्मार्थकाम विशेषण की २७२,२७३. २७२,२७३. इन्द्रियों की उच्छखसता से होने वाले सार्थकता। दोष । २४२. परलोक, मुक्तिमार्ग और मोक्ष की २७४. दुष्प्रणिहित इन्द्रिय वाले व्यक्ति की अवस्था निश्चिति। का निर्देश । २४३. अठारह असंयम-स्थानों में से एक स्थान २७५. नोइन्द्रियप्रणिधि का स्वरूप । का भी सेवन करने वाला श्रमण नहीं। २७६. दुष्प्रणिहित व्यक्ति की तपस्या की व्यर्थता । २४४. अठारह असंयम-स्थानों का निर्देश । २७७. उत्कट कषाय से श्रामण्य की निष्फलता । २७८. प्रणिधि के भेद । सातवां अध्ययन २७९. प्रशस्त और अप्रशस्त इन्द्रिय प्रणिधि का २४५. वाक्य शब्द के निक्षेप । स्वरूप-कयन । २४६, वाक्य के एकार्थक । २८०. अप्रशस्त इंदियप्रणिधि से कर्मबंध तया २४७. द्रव्य एवं भावभाषा के भेदों का उल्लेख । प्रशस्त से कर्मक्षय। २४८. द्रव्य और भाव भाषा के आधार पर २८१. संयम की साधना के लिए प्रणिधि का आराधनी और विराधनी भाषा का आसेवन और अनायतनों का वर्जन । विमर्श। २८२. दुष्प्रणिहित योगी के लक्षण । २४९. सरप भाषा के दस प्रकार। २८३. सुप्रणिहित योगी का स्वरूप । २५०. मृषा भाषा के दस प्रकार । २८४, अप्रशस्त प्रणिधि के वर्जन का निर्देश । २५१. सत्यामृषा (मिथ) भाषा के प्रकार । आचार प्रणिति के चार अधिकारों का २५२,२५३. असत्यामृषा (व्यवहार) भाषा के भेदों का कथन 1 निर्देश। नौवां अध्ययन २५४. सभी भाषाओं के दो-दो भेद-पर्याप्त और अपर्याप्त । २८६. विनय तथा समाधि के निक्षेप । २८७. विनय के पांच भेदों का नामोल्लेख । २५५-५७. ध्रुव विषयक भाव भाषा का कथन । २८८. लोकोपचार बिनय के प्रकार । २५८. चारित विषयक भाव भाषा का कथन । २८९. अर्थविनय का प्रतिपादन । २५९. शुकि सन्द के निक्षेप । २९०. कामविनय और भयविनय का वर्णन । २६०,२६१. द्रव्य शुटि के भेद । २९१. मोक्षविनय के भेदों का निर्देश । २६२,२६३. भाव शुद्धि के भेद । २९२. दर्शनविनीत का स्वरूप । २६४. भाव शुदि से ही वाक्य शुद्धि का निर्देश । शानविनीत की पहचान । २६५. भाषा के असंयम का परिज्ञान करने का २९४. चारित्रविनीत का लक्षण । निर्देश। २९५. तपविनीत का स्वरूप। २६६. मान रहता हुआ भी बचनगुप्त नहीं। अनाशातनाविनय का स्वरूप-कपन । २६७. दिन भर बोलता हुआ भी वचनगुप्त । २९७. कायिक, वाचिक और मानसिक विनय के २१८. चिन्तनपूर्वक बोलने का निर्देश । भेद-प्रभेद । २८५.
SR No.090302
Book TitleNiryukti Panchak
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorMahapragna Acharya, Kusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages822
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size19 MB
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