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नमितशास्त्रम
का संकेत करती है। e- विशाखा:- विशाखा नक्षत्र में प्रथम वर्षा होने पर उस वर्ष में से बहुत जलवाछ होती है। प्रथम वर्षा में ही तालाब और पोखरे भर जायेंगे। धान, गेहूँ, जूट और तिलहन आदि की फसल अपेक्षाकृत बहुत अच्छी होती है। व्यापार की दृष्टि से वह वर्ष अच्छा माना गया है। १७ = अनुराधा :- अनुराधा नक्षत्र में प्रथम वर्षा होने से जलवृष्टि तो. अत्यधिक होगी परन्तु इसके प्रभाव से गेहूँ पर रोग का आक्रमण होगा। गन्ने की फसल बहुत अच्छी होगी । यह वर्षा व्यपार की दृष्टि से शुभ संकेत है। देश के आर्थिक विकास तथा कला-कौशल की उन्नति में यह वर्षा सहयोगिनी मानी गयी है। *१८ = जेष्ठा:- इस नक्षत्र की प्रथम वर्षा उस वर्ष में अल्पवर्षा होने का संकेत करती है। इससे पशुयों को कष्ट होता है। नाग के अभाव से मवेशियों का मूल्य सस्ता हो जाता है । दूध की उत्पत्ति कम होगी। उक्त वर्षा से देश को आर्थिक हानि होगी । चेचक आदि संक्रामक रोगों की वृद्धि होगी। सेना में विरोध और जनता में उपद्रव होंगे। यह वर्षा भाद्रपद
और आश्विन के माह में केवल सात दिनों की वर्षा को प्रकट करती है। इस वर्षा से फाल्गुन माह में घनघोर वर्षा की सूचना देते है. जिससे फसल की हानि होती है। १९ = मूल :- मूल नक्षत्र में वर्ष की प्रथम वर्षा होने से उस वर्ष वर्षा अच्छी होती है; फसल बहुत अच्छी होती है। विशेषरूप से भाद्रपद और आचिन माह में उचित समय पर उचित मात्रा में वर्षारती है। व्यापारिक दृष्टि से यह वर्षा लाभदायक है। यह वर्षा खनिज पदार्थ और वनसम्पत्ति है * की वृद्धि में कारण होती है।
मूल नक्षत्र में यदि गर्जना के साथ बर्षा हो तो माघ में भी जलवर्षा होती है। यदि बिजली अधिक कड़के तो फसल में कमी आती है। शान्त एक और मन्दवायु के साथ वर्षा होने पर फसल अत्युत्तम होगी । चना अन्य अनाजों की अपेक्षा से महँगा रहेगा। २० = पूर्वाषाढ़ा :- इस नक्षत्र में प्रथम वर्षा होने पर अधिकांश मूल नक्षत्र में वर्षा के होने से प्राप्त होने वाले फलों के समान ही फल प्राप्त १ होते हैं। .