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निमित्तशास्त्रम
---निमित्तशास्त्रम् -
[८७ २१ = उत्तराषाढ़ा :- उत्तराषाढ़ा नक्षत्र में प्रथम वर्षा होती है तथा हवा में भी तेजी हो तो चैत्रीय फसल बहुत अच्छी होगी । अगहनी धाम भी का अच्छा होगा परन्तु कार्तिकी अनाज में कमी आयेगी । नदियों में बाढ़
आने से जनजीवन अस्ताव्यस्त होगा । भाद्रपद और पौष माह में हवा चलती है, जिससे फसल को क्षति पहुंचती है।। २२ = श्रवण :- श्रवण नक्षत्र में वर्ष की प्रथम वर्षा होने पर कार्तिक माह में जलाभाव होगा परन्तु शेष माह में जलवर्षा अच्छी होगी । भाद्रपद । * माह में अपेक्षाकृत अच्छी वर्षा होगी और उससे धान, मकई, ज्वार और र बाजरा की फसलें बहुत अच्छी होगी। अश्विन माह के शुक्लपक्ष में भी अच्छी वर्षा होगी. जिससे लोर पर कीड़ा लनाकर शास फसल की हानि होती है। उक्त नक्षत्र की वर्षा आश्विन,कार्तिक और चैत्र के माह में रोग की सूचना देती है। स्त्रियों की दृष्टि से यह वर्षा लाभदायक है। २३ = धनिष्ठा :- धनिष्ठा नक्षत्र की प्रथम वर्षा श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, माघ और वैशाख माह में घनघोर वर्षा की सूचना । देती है। अतिवृष्टि के कारण किसी-किसी स्थान पर फसल की हामि । होगी। आर्थिक दृष्टि से उक्त वर्षा लाभदायक होती है। देश के वैभव की भी वृद्धि होती है।
यदि यह वर्षा गर्जन और तर्जन के साथ होती है उक्त फल का चतुर्थांश ही प्राप्त होता है। व्यापार के लिए ऐसी वर्षा मध्यम फलदायक है। विदेशों से व्यापारिक सम्बन्ध बढ़ता है।
धनिष्ठा नक्षत्र की प्रथम घटिका में वर्षा हो तोपः प्राप्ति पूर्णरुप से होती है परन्तु अन्तिम तीन घटिका में वर्षा होने पर फल साधारण ही होता है। २४ = शतभिषा :- शतभिषा नक्षत्र में वर्ष की प्रथम वर्षा होने पर पाली बहुत बरसता है । अगहनी फसल मध्यम होती है परन्तु क्षेत्रीय फसल अच्छी होती है। यधपि व्यापार में हानि होती है, मगर जूट और
चीनी के व्यापार में साधारण लाभ होता है। २२५ = पूर्वाभाद्रपदा :- यदि वर्ष की प्रथम वर्षा पूर्वभाद्रपदा नक्षत्र
के प्रथम पाँच घटिकाओं में होती है तो वर्षा और फसल मध्यम होती है। माघ माह में वर्षा का अभाव हो जाने से चैत्रीय फसल में कमी होती है।