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CENSED
निमित्तशास्त्रम
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अर्थ :
जो नक्षत्रों के योग कहे गये हैं, उन्हें गर्भकाल कहा गया है। जो ' ज्ञानीजन इनके अनुसार कार्य करते हैं उनको निश्चित ही फल मिलता है ।
प्रकरण का विशेषार्थ
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सत्ताईस नक्षत्र हैं । ग्रन्थकर्त्ता ने किस नक्षत्र पर वर्ष की प्रथम वर्षा होने पर क्या फल होता है? इसका वर्णन किया ही है। अन्य संहिता' ग्रन्थों में प्रथम वर्षांनक्षत्र के फल निम्नांकित हैं१ = अश्विनी :- अश्विनी नक्षत्र के प्रथम चरण में वर्षा का आरम्भ होने से चातुर्मास में अच्छी वर्षा होती है और फसल भी अच्छी होती है। विशेषतः चैत्रीय फसल अच्छी होती है। मनुष्य और पशुओं को सुखशान्ति प्राप्त होती है। यद्यपि इस वर्ष वायु और अग्नि का अधिक प्रकोप होता है, फिर भी किसी प्रकार की बड़ी क्षति नहीं होती है। ग्रीष्म ऋतु में लू अधिक चलती है तथा गर्मी में भीषणता होती है। देश के नेताओं में मतभेद और उपद्रव होते हैं। व्यापारियों के लिए यह वर्षा लाभदायक होती है ।
अश्विनी नक्षत्र का प्रथम चरण लगते ही वर्षा का आरम्भ हो और समस्त नक्षत्र के अन्त तक वर्षा होती रहे तो वह वर्ष उत्तम नहीं। रहता है। चातुर्मास के उपरान्त जल नही बरसता, फसल भी अच्छी नहीं होती ।
अश्विनी नक्षत्र के अन्तिम चरण में वर्षा होने पर पौष में वर्षा का अभाव तथा फाल्गुन में वर्षा का बोध होता है। इस चरण में वर्षा का आरम्भ होना साधारण होता है। वस्तुओं के भाव नीचे रहते है। आश्विन मास से वस्तुओं के भावों में उन्नति होती है। व्यापारिओं में अशान्ति रहती है। प्रायः बाजारभाव अस्थिर रहता है।
अश्विनी नक्षत्र के चतुर्थ चरण में वर्षा का आरम्भ होने पर उत्तम वर्षा और अच्छी फसल होती है।
२= भरणी :- भरणी नक्षत्र में वर्षा का आरम्भ होने पर वर्षा का अभाव रहता है अथवा अल्पवर्षा होती है। फसल के लिए उक्त वर्षा अच्छी :