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निमितशास्त्रमा
किया गया है। १०:- यह प्रकरण माथा १३४ से १४७ पर्यन्त अर्थात् १४ गाथाओं में विस्तृत है । इस प्रकरण में गन्धर्वनगर के कारण से ज्ञात होने वाले शुभाशुभ फल का बोध कराया गया है। ११ :- यह प्रकरण गाथा १४८ से १५३ पर्यन्त अर्थात् ६ गाथाओं में , विस्तृत है । उत्पलपतन की घटना को देखकर उसके द्वारा शुभाशुभ फल को जानने के उपाय इस प्रकरण में वर्णित है। १२ :- यह प्रकरण गाथा १७४ से १६२ पर्यन्त अर्थात् १ गाथाओं में से विस्तृत है। विद्युल्लता को देखकर समस्त इष्टानिष्ट फलों को जानने के उपाय इस अध्याय में बताये गये हैं।
R:- सदाका 12 से . पर्यन्त अर्थात् १३ गाथाओं में विस्तृत है। इस प्रकरण में मेघविषयक योग प्रकट किये गये हैं। १४:- यह प्रकरण माथा १७६ से १८५ पर्यन्त अर्थात् १० गाथाओं में से विस्तृत है। धूमकेतु को देखकर उससे भविष्यकालीन फलों को जानने । के उपायों का वर्णन इस प्रकरण में किया गया है।
इसके पश्चात् दो गाथाओं में ग्रन्थ का उपसंहार किया गया है। इसप्रकार इस ग्रन्थ में कुल १८७ गाथायें हैं।
इस ग्रन्थ के रचयिता कौन हैं ? इस प्रश्न का उत्तर खोजना * अतिशय सरल है क्योंकि ग्रन्थका ने इस ग्रन्थ में अपने नाम का प्रयोग तीम बार किया है।
ठिदतीय गाथा में ग्रन्थ की रचना करने की प्रतिज्ञा करते हुए ज्यकार ने अपना और ग्रन्थ का नाम लिखा है। उसके अतिरिक्त दो स्थानों पर उनके नाम का उल्लेख स्पष्टसप से हुआ है। यथा :११:- अह खलुमारिसिपुत्तिय णाणणिमुत्तुपाय ।
पस्सयणं पक्खइस्सामि वग्गमुणि सिद्धकर्म ॥ जोइसणाणो विहपणविकणच्याव्वसव्वणितुप्पायं ।
तं खलु तिविहेण वोच्छामि ॥३॥ अर्थः- यह निश्चय है कि निमित्तशास्त्र तीन प्रकार का है। ज्ञानी पुरुषों ने, निमित्तशास्त्र का जैसा निरूपण किया है, मैं प्रषिपुत्र भी वैसा ही निरूपण