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निमित्तशास्त्रम्
का वर्णन कसंगा। - अपनी प्रतिज्ञा का निर्वहण करते हुए ग्रन्थकर्ता ने चौदह प्रकार
के निमित्तों का कथन करते हुए ग्रन्थ का विस्तार किया है। ११:- यह प्रकरण गाथा ७ से २१ पर्यन्त अर्थात् १५ गाथाओं में विस्तृत
है। इस प्रकरण में ग्रन्थकर्ता ने सूर्यसम्बन्धित निमित्तों का विस्तारपूर्वक कथन किया है। २:- यह प्रकरण गाथा २२ से ३२ पर्यन्त अर्थात् ११ गाथाओं में विस्तृत है। इस प्रकरण में ग्रन्थकर्ता ने मेघसम्बन्धित निमित्तों का विस्तारपूर्वक र कथन किया है। ३:- यह प्रकरण माथा ३३ से ४३ पर्यन्त अर्थात् ११ गाथाओं में विस्तृत है। इस प्रकरण में गन्यात जे काजलराजनित निमित्तों का विस्तारपूर्वक कथन किया है। ४:- यह प्रकरण गाथा ४४ से ६४ पर्यन्त अर्थात् २१ गाथाओं में विस्तृत । है। इस प्रकरण में ग्रन्थकर्ता ने सामान्य उत्पातलक्षणों को देखकर
उससे शुभाशुभ को जानने की विधि दर्शायी है। १५:- यह प्रकरण गाथा ६५ से ६१ पर्यन्त अर्थात् ५ गाथाओं में विस्तृत
है। इस प्रकरण में ग्रन्थकर्ता ने वर्षा से सम्बन्धित अनेक उत्पातों का वर्णन किया है। ६:- यह प्रकरण गाथा ७० से १२ पर्यन्त अर्थात् २३ गाथाओं में विस्तृत है। इस प्रकरण में प्रतिमाओं के विकृतरूप से हो जाने पर प्राप्त होने * वाले फलों का कथन किया गया है। १७:- यह प्रकरण गाथा १३ से १00 पर्यन्त अर्थात् ८ गाथाओं में विस्तृत
है। राजा के छत्र का भंग आदि होने पर क्या फल होते हैं ? इनका वर्णन करने के लिए इस प्रकरण की रचना हुई है।
:- यह प्रकरण गाथा १०१ से ११५ पर्यन्त अर्थात् १५ गाथाओं में विस्तृत है। इन्द्रधनुष के माध्यम से आगामी काल में होने वाले शुभाशुभ फल को जानने की विधि इस प्रकरण में प्रदर्शित की गयी है। र ९ :- यह प्रकरण गाथा ११६ से १३३ पर्यन्त अर्थात् १८ गाथाओं में
विस्तृत है । उल्काओं का पतन होने पर कौन-कौनसे शुभाशुभ फलों १ की प्राप्ति होती है ? इस विषय को प्रस्तुत प्रकरण में विशदरूप से स्पष्ट