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-निमित्तशास्त्रम
[२६ __यदि रात्रि में गाय-बैलों का रंभाना व चिल्लाना हो, अथवा परस्पर कलह हो तथा प्रचुरता से मेंढक, मयूर, श्वेतकाक, और गीध आदि पक्षियों,
का परिभ्रमण हो तो उस देश का विनाश होता है। र यदि अपूज्य लोगों की पूजा होजे लगे और पूज्य पुरुषों की पूजा । न हो, हथिनी के गण्डस्थलों से मद झरने लगे, दिन में श्रृगाल रोवें-. चिल्लावें और तीतरों का विनाश हों तो जगत् में भय उत्पन्न होता है।
गर्दभ के रेंकने के समकाल में ही अन्य गर्दभ रेकने लगे अथवा अन्य नाखूनी पंजे वाले जीव चिल्लाने लगे, तब दुर्भिक्ष आदि होता है ।
अन्य जाति के पशु-पक्षी का अन्य जाति के पशु-पक्षी के साथ बोलना, अन्य जाति से प्रसव में शिशु होना, अन्य जाति के पशु-पक्षी के साथ अन्य जाति के पशु-पक्षी का मैथुन करना और गर्दभ की प्रसूति का, देखना भी भयपद्ध होता है। (उपर्युक्त वर्णन कुन्दकुन्द श्रावकाचार से यथावत् लिया गया है।)
उत्पात के कारण होने वाले अनिष्टो का क्षेत्र बहुत विस्तृत है.. क्योकि उत्पातों के कारण से सभी क्षेत्रों में मनुष्य अथवा प्रकृति को हानि होती है। फिर भी सुविधा की दृष्टि से कुछ क्षेत्रों का चयन करके उनसे
सम्बन्धित उत्पातों का वर्णन करना सामयिक ही होगा। ११:- वैयक्तिक हानि और लाभसूचक उत्पात - यदि किसी व्यक्ति को कहीं बाजा न बजते हुए भी बाजों के बजने की आवाज लगातार सात दिनों तक आती रहे तो चार माह में उसकी मृत्यु हो सकती है।
साधारणतया किसी जीव को अपने नाक के अग्रभाग पर बैठी हुई मक्खी दिखाई नहीं देती है। फिर नहीं होने पर दिखाई देने की बात * तो हास्यास्पद ही है। जिसे यह Eश्य दिखता है, उसे चार माह तक व्यापार
में हानि होती है। क जो व्यक्ति स्थिर वस्तुओं को चलायमान और चलायमान वस्तु को स्थिररूप में देखता हो उसे व्याधि, धनक्षय का भय और मरणय सताता है। में यदि प्रातःकाल जागने पर किसी की दृष्टि अपने हाथों की हथेलियों पर पड़ जाय तथा हाथ में कलश, ध्वजा और छत्र सहज ही दिखलाई पड़े तो उसे सात महीने तक निरन्तर धन का लाभ होता है तथा