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-निमित्तशास्त्रम
(१९) अयंकर दुर्भिक्ष का सामना करना पड़ सकता है। किसी भी ग्रह के व्दारा भय के कारण से चन्द्रमा का भेदन होता है तो राजभय होता है और प्रजा को दारुण दुःख होता है । क्रुरग्रह से युक्त चन्द्रमा यदि राहु के व्दारा ग्रहण किया गया हो या देखा गया हो तो राजा और सामन्त क्षुब्ध होते हैं और प्रजा को पीड़ा होती है : ..
ऊपर में स्थित चन्द्रमा मनुष्यों के पापों का विनाश करता है। तिर्यस्थ चन्द्रमा राजा और मन्त्री के पाप का विनाश करता है। अधोगत
चन्द्रमा समस्त पृथ्वी के पापों का विनाश करता है। म चन्द्रमा के चारों ओर खण्डित मण्डल दिखाई पड़ना सम्पूर्ण । देश के लिए भयप्रद है। उससे पाँचवें माह में दूध का विनाश भी जानना। चाहिये । पर्वरहित ग्रहणयुक्त चन्द्रमा भय और पीड़ा का कारण है।
यदि चन्द्रमा स्वच्छ और सम हो तो अच्छा पानी बरसता है।* चन्द्रमा हलसदृष हो तो सुभिक्ष को प्रकट करता है । बाल धनुषाकार १. चन्द्रमा भी सुभिक्ष को प्रकट करता है।
यदि चन्द्रमा की किनारी दक्षिणदिशा की ओर ऊँची हो तो वह आरोग्य के वर्धन की सूचना देती है । चन्द्रमा की किनारी समान हो तो वह सम्पत्ति की सूचना देती है। * यदि चन्द्रमा सपाट आकार वाला हो तो मनुष्यों को दण्ड की ॐ सूचना देता है।
__ आचार्य श्री भद्रबाहु के मतानुसार जिस व्यक्ति के जन्मनक्षत्र पर में राहु चन्द्रमा का ग्रहण करे अर्थात् चन्द्रग्रहण हो तो उस मनुष्य के लिए रोग और मृत्यु का भय अवश्य होता है ।
आचार्य श्री के शब्दों में -
राहुणा गृह्यते चन्द्रो, यस्य नक्षत्रजन्मनि। रोगं मृत्युभयं वापि, तस्य कुर्यान्न संशयः॥
(भद्रबाहु संहिता:-१४/९४) पूर्व प्रकरण में सूर्य के आकार-प्रकारों को देखकर मेघविषयक योग बताया गया है। वहीं वर्षा विषयक योग चन्द्र से सम्बन्धित भी जानना चाहिये । केवल सूर्यप्रकरण में जहाँ सूर्य लिखा है, वहाँ चन्द्र समझना चाहिये।