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निमितशास्त्रम
प्रकरण का विशेषार्थ
इस प्रकरण में चन्द्र के निमित्त से ज्ञात होने वाले शुभाशुभ फल का वर्णन किया गया है। चन्द्र का आकार, रंग और ग्रहयुति के निमित्त से फल में अन्तर आता है ।
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यदि चन्द्रमा लाल दिखाई देवें तो ब्राह्मणों के लिए भयप्रद है । यदि चन्द्रमा पीला दिखाई देवें तो क्षत्रियों के लिए भयप्रद है । यदि चन्द्रमा खाखी दिखाई देवें तो वैश्य के लिए भयप्रद है । यदि चन्द्रमा काला दिखाई देवें तो शुद्ध के लिए भयपढ है। यदि चन्द्रमा पंचरंगा अथवा दूध के रंग का दिखाई देवें तो दूधारू पशुओं का विनाश अवश्य होता है। यदि चन्द्रमा लाख के रंग का दिखाई देवें तो सम्पूर्ण देश के लिए भयप्रद है ।
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आचार्य श्री भद्रबाहु का मत है कि - शस्त्रं रक्ते भयं पीते, धूमे दुर्भिक्षविद्रवे । चन्द्रे तदोदिते ज्ञेयं, भद्रबाहुवचो यथा ॥
( भद्रबाहु संहिता :- १४ / १३६) अर्थात् :- उदित होते हुए चन्द्रमा का वर्ण लाल होने पर मनुष्यों को शस्त्र का भय - होता है । उदित होते हुए चन्द्रमा का वर्ण पीला होने पर मनुष्यों को दुर्भिक्ष का भय होता है और उदित होते हुए चन्द्रमा का वर्ण धूम के समान होने पर वह मनुष्यों के • लिए आतंक का सूचक होता है, ऐसा भद्रबाहु स्वामी का वचन है ।
आषाढ़ मासीय शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को चन्द्रमा के दोनों श्रृंग (किनारी) समान दिखलाई पड़े तथा मण्डल भी समान हो तो वह 'निस्सन्देह राजा के लिए भय करने वाला होता है। यदि इसी दिन दोनों . श्रृंग समान दिखलाई पड़े तो अनाज की उत्पत्ति कम होती है तथा वर्षा भी कम होती है। चन्द्रमा का बायाँ श्रृंग उन्नत होनेपर लोक में दारुण • भय का संचार होता है, इसमें संशय नहीं है ।
यदि चन्द्रमा के उदयकाल में चन्द्रमा के दक्षिण श्रृंग पर शुक्र हो तो राजा का ससैन्य विनाश होता है। विकृत मंगल यदि चन्द्र के श्रृंग पर स्थित हो तो पुरोहित और राजा के चंचल हो जाने से प्रजा को अत्यन्त कष्ट होता है। चन्द्रश्रृंग पर शनि के होने पर वर्षा का भय होता हैं और