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लिपितशास्त्रम
[१० मेघ को सतर कहते हैं। यह नीले वर्ण का मेघ यदि नीचे की ओर मुख किये हुए पता चले तो बहुत अधिक वर्षा होती है। अभतरु शत्रु के ऊपर। आक्रमण करने वाले राजा के पीछे-पीछे चलकर अचानक शान्त हो जाय तो युवराज और मन्त्री का नाश होता है।
यदि शाम के समय गन्धर्वनगर, कुहासा और धूम छाये हुए दिखाई पड़ जाये तो वर्षा कम होती है। शाम के समय में शस्त्र को धारण किए हुए मनुष्य रूपधारी मेध सूर्य के सामने छिन्न-भिल हो तो शत्रुभय होता है। श्वेतवर्ण और श्वेत किनारे वाले मेघ शाम के समय में सूर्य को आच्छादित करें तो वर्षा होने का योग समझना चाहिये। यदि सूर्योदय के काल में दिशायें पीत. हरित और चित्र-विचित्र रंग की हो तो सात दिन में प्रजा में. भयंकर रोग फैलेंगे। यदि सूर्योदय के काल में दिशायें नीले रंग की हो तो समय पर वर्षा होगी और यदि सूर्योदय के काल में दिशायें काले रंग की; हो तो बालकों में रोग फैलता है।
प्रातःकालीन और सायंकालीन सन्ध्याओं के रंग एक समान होने पर एक माह तक मसाला और तिलहन का भाव सस्ता, सोना और चाँदी का भाव महँगा होगा। प्रातःकालीन और सायंकालीन सन्ध्याओं के रंगों में परिवर्तन हो तो सभी प्रकार की वस्तुओं के भावों में अत्यधिक में गिरावट की सम्भावना होती है।
यदि उदित होता हुआ सूर्य पूर्व दिशा में सामने की ओर विकृत उत्यात से सहित दिखलाई दे तो निवासी राजा के और पीछे की ओर. विकृत दिखाई देवे तो आक्रामक राजा के विनाश का सूचक होता है।
यदि उदयकालीन सूर्य सुनहरे रंग का हो तो वर्षा का प्रमाण अच्छा होता है। यदि उदयकालीन सूर्य मधु के समान रंग का हो तो लाभप्रद माना गया है और उदयकालीन सूर्य सफेद रंग का हो तो सुभिक्ष और कल्याण की सूचना देता है।
हेमन्त और शिशिर ऋतु में लाल रंग, ग्रीष्म और वसन्त ऋतु में पीला एवं वर्षा और शरद ऋतु में सफेद रंग का सूर्य शुभदायक है, इन ६ वर्गों से विपरीत वर्ण का हो तो उस सूर्य को अयदायक जानना चाहिये।
सूर्य की विविध आकृतियों के कारण भी फलादेश में भिन्नता आती है । अतः सूर्यप्रकरण का अध्ययन सूक्ष्मता से करना चाहिये।