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जिमितशास्त्रम -
१० ८७. यदि शिव का लिंग फूटै और उसके अंदर अग्नि की ज्वाला उठे या खून की धारा निकलै उसका फल बतलाते हैं। ८८. शिवलिंग फूटने से आपस मैं फूट फैल जावै और अग्नि की ज्वाला
से देश का नाश हो जावेगा । खून की धारा से घर-घर रोना होगा। १८९. ऐसे उत्पातों के होते ही मनुष्यों को चाहिये कि तीन मास तक
भक्तिसंयुक्त देवों की पूजा करें। ९०. देवों का अपमान नुकसान का हेतु है । इसलिए देवों को कभी
अपूज्य नहीं रक्रदै । और रोजाना पूजन करै, इस ही मैं भलाई है। ३९१. पुष्प, गंध, धूप, दीप, नैवैद्य । ९२. देवों को संतुष्ठ हुए वह विनाश नहीं करते और दुःख संताप वगेरह
भी नहीं देते। १९३. छत्र, चमर टूटकर आपसे आप राजा के पास पडै तो पांचवे दिन *जरुर राजा की मृत्यु होगी। १.९४. जहाँ ढोलक तुरंग. तुरई शंख के बजने की आवाजें कान मैं सुनाई
देती हों तो वही जरुर पाचवें महीने राजा की मृत्यु होगी । १९५. जहाँ मूसे से लडते जम दिखाई दें वहाँ जरुर पांचवें महीने राजा
की मृत्यु होगी। १६. यदि नगरकोट पर या नगर के दरवाजे पर, देवमंदिर पर या चौराहे पर या राजमहल पर यक्षों को लड़ते-नाचते देखें तो निम्नोक्त फल्न जाना
१.९७. कोटपर नाचने से बच्चों को नुकसान, दरवाजे से स्त्रिया जो गर्भवती में है उनको नुकसान, गऊशाला या धुडशाल से साहूकारों को नुकसान होगा।
१९८. देव मंदिर से ब्राह्मणों को तकलीफ हो, राजमन्दिर से राजा का
मरण हो और चौराहे से शहर का नाश होता है। 1.९९. सूर्य में छेद से मालूम होने ल. और सूर्य के मध्य में कुंजाकृतिक
मनुष्य वगेरह मालुम हों तो भी एक साल में राजा की मृत्यु और संग्राम । होगा। १००. दिन को उल्लू और रात को कौवे रोवै तो शहरनाश भय होगा।
अब इंद्रधनुषे स्वरूप प्रारंभ