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-निमित्तशास्त्रम
[९२ जइधुवमझेदीसइ केऊसयलंविणासए पुहवी।
सवणगणाणंअचलंचलणंच करेदिसत्ताणं॥१८४|| अर्थ :
यदि केतु ध्रुव के भीतर दिखाई देवे तो पृथ्वी पर वह चल को अचल व अचल को चल कर देता है।
पुहवी सव्वविणासोणायव्वाजत्थदीसएका
तम्हातंपुण देसेपरिहरियव्वंपयत्तेण॥१८५|| अर्थ :
जहाँ पर ऐसा केतु दिखाई देता है, वहाँ वह सर्व पृथ्वी के नाश का कारण है। इसलिये ज्ञानियों को चाहिये कि वे उस देश का त्याग करें।
प्रकरण का विशेषार्थ मध्यरात्रि में आकाश के पूर्वभाग में दक्षिण के आगे जो केतु दिखाई ४ पड़ता है, उसे धूमकेतु कहते हैं। यह केतु धूम्रवर्ण का है। वैसे ज्योतिषशास्त्र में केतुओं के अनेक भेद किये गये हैं। उनमें धूमकेतु अतिशय प्रभावकारी है। उसके अशुभ प्रभाव की बलवत्ता के कारण ही इस ग्रन्थ में उसे कालपुत्र की संज्ञा दी गयी है।
धूमकेतु प्रायः अशुभरूप ही होता है । वह जिस दिशा में उत्पन्न के होता है, उस दिशा में स्थित देशों के लिए हानिकारक है । उस दिशा में रोग और क्षुधा आदि की महाभयंकर पीड़ा होती है । विशेष यह है कि यदि धूमकेतु का उदय पूर्वदिशा में हो तो वह पश्चिमी देशों में स्थित जगरों का विनाश करता है और यदि धूमकेतु का उदय पश्चिमदिशा में हो तो वह पूर्वी देशों में स्थित नगरों का विनाश करता है।
जिधर धूमकेतु की पूँछ होती है, उधर वह सर्वत्र भय को उत्पन्न करता है।
जिधर धूमकेतु का मस्तक होता है, उधर वह युद्ध के भय को है