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निमित्तशास्त्रम्
संसूचित करता है।
जिधर धूमकेतु का मध्यवर्ती भाग होता है, उधर वह आनन्द को विस्तारित करने वाला होता है। र यदि केतु का उदय गुरु के पास होवे तो वह ब्राह्मणों का विनाशकार
है। ऐसा केतु अल्पवृष्टि और धान्यविनाशक भी होता है। यह केतु वृद्ध के विद्वान और विशिष्ट राजाओं का भी विनाश करता है।
याद केतु का उदय शुक्र के पास हो तो वह नियों का विनाशक है। इतना ही नहीं, अपितु वह धाज्य, राजा, जाग, दैत्य और शूरवीरों को पीड़ा देने वाला होता है।
यदि केतु का उदय चन्द्रमा के पास होवे तो वह बालकों का घातक माना गया है। ऐसा केतु राजमृत्यु को भी सूचित करता है।
यदि केतु का उदय सूर्य के साथ होवे तो वह देशनाशक है। यदि केतु का उदय बुध के साथ होवे तो वह शान्तिकारक है।
यदि केतु के दर्शन ध्रुव के मध्य में होते हैं तो वह पृथ्वी के चंचल वस्तुओं को अचल और अचल वस्तुओं को चंचल करेगा ऐसा निश्चरातः । जानना चाहिये।
यदि केतु सप्तऋषियों में से किसी एक को भी प्रधूमित करे, तो ब्राह्मणों को समस्त प्रकार के क्लेशों का सामना करना पड़ेगा । ऐसा 5 आचार्य श्री भद्रबाहु जी का मत है।
यदि केतु सन्ध्याकाल में दिखाई पड़ता है अथवा सुकुमारचक्र में अदिखाई पड़ता है तो वह महान अशुभकारक है । उसके कारण जलचर
जीव, जल और वृद्ध वृक्षों का घात होगा। प्र केतु के अशुभ फल को जानकर उसका दर्शन होने पर उस देश का त्याग कर देना ही उचित है।
पापकारी केतु की शान्ति के लिए क्या करना चाहिये ? इस *प्रश्न का उत्तर देते हुए आचार्य श्री भद्रबाहु जी ने लिखा है -
दीक्षितान् अर्हदेवांश्च, आचार्याश्च तथा गुरून् । पूजयेच्छान्तिपुष्ट्यर्थ, पापकेतुसमुत्थिते ।।
(भद्रबाहुसंहिता :- 11/41) अर्थात् :- पापकेतुओं की शान्ति के लिए मुनि, आचार्य, गुरु, दीक्षितसाधु और तीर्थंकरों । की पूजा करनी चाहिये।