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निमित्तशास्त्रम
सागत
धूमकेतु प्रकरण अहकालपुत्तचरिय केतुस्स हाणिदु ........।
........दिचत्तारिणियमेण ॥१७६|| अर्थ :
अब कालपुत्र जो कि धूमकेतु के नाम से प्रसिद्ध है, उसके सुखदुःखरूप फल को कहते हैं।
केउस्स सुहाणिपुणो सयमिक्कंहोइअसुहरूवेण। है जत्थेणजत्थ केऊतंदिसणिसासयाहोई।।१७७|| अर्थ :
धूमकेतु प्रायः अशुभरूप होता है और जिस दिशा में उत्पन्न होता है. उस दिशा के जाश में हेतु बनता है।
अहपच्छिमेण भागेणउछिदोपुव्वदोविणासेई। पुव्वेणपच्छिमेणय इणुविचरीयचारेणं॥१७८॥
अर्थ :
* यदि उसका उदय पूर्वदिशा में होवे तो वह पश्चिमदिशा का और में यदि उसका उदय पश्चिमदिशा में होवे तो वह पूर्वदिशा का नाश करता
जइ पुच्छंतत्थभयंजत्थसिरोतत्थणिन्भऊहोई।
सिरपुच्छमज्झऐसे पमुदीदोणत्थिसंदेहो॥१७९|| अर्थ :
धूमकेतु की पूंछ जिधर की ओर होती है, उधर दह भयकर्ता होता है है। जिधर धूमकेतु का मस्तक हो , उधर वह संश्यामकर्ता होता है। जिधर धूमकेतु की पूंछ तथा मस्तिष्क के बीच का भाग होता है, वहाँ वह