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निमित्तशास्त्रम
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रेवती नक्षत्र के प्रथम चरण में वर्षा होने पर चातुर्मास में अच्छी
क्षत्री वर्षा का
'वर्षा होगी। पौष और माघ मास में भी वर्षा का योग होगा। वस्तुओं के भाव अच्छे रहते हैं। गुड़ के व्यापार में अच्छा लाभ होगा। देश में सुभिक्ष और शान्ति रहती है । यदि जाता है तो फसल, मध्यम होती है, क्योंकि अतिवृष्टि फसल को हानि पहुँचाती है। चैत्रीय फसल उत्तम होती है। अगहनी फसल में कमी नहीं आती केवल कार्तिकीय फसल में कमी आती है। मोटे अनाजों की उत्पत्ति कम होती है। श्रावण मास में प्रत्येक वस्तु महँगी हो जाती है ।
यदि रेवती नक्षत्र के तृतीय चरण में वर्षा हो तो भाद्रपद मास सूखा जाता है, केवल हल्की वर्षा होकर रुक जाती है। आश्विन मास में अच्छी वर्षा होती है, जिससे फसल अच्छी होती है। श्रावण से आश्विन मास तक सभी प्रकार का अनाज महँगा रहता है। अन्य वस्तुओं में साधारण लाभ होता है। घी का भाव अधिक ऊँचा रहता है। रोगों के. कारण मवेशियों की क्षति होती है। गेहूं, चना और गुड़ का भाव सस्ता रहता है। मूल्यवान धातुओं के मूल्य की वृद्धि होती है। रेवती नक्षत्र के चतुर्थ चरण में वर्षा होने पर समयानुकूल पानी बरसता है। फसल भी अच्छी होती है। उक्त वर्षा व्यपारियों के लिए लाभदायक है ।
यदि रेवती नक्षत्र का क्षय हो और अश्विनी नक्षत्र में वर्षा का आरम्भ हो तो वर्षा अच्छी होगी परन्तु शीत के कारण मनुष्य और पशुओं, को कष्ट होगा ।
यहाँ वर्षा का प्रभाव श्रावण कृष्ण प्रतिपदा को मानना चाहिये तथा उसके बाद ही नक्षत्र फलानुसार वर्षा का प्रभाव जानना चाहिये । मेघों की आकृति, उनका काल, वर्ण और दिशा आदि के कारण भी वर्षा के प्रमाण और फल में अन्तर आता है। मेघों के गर्जन और तर्जन से भी शुभ और अशुभ फलों का बोध होता है। मुख्य बात यह है, कि मधुर स्वर वाले, सुन्दर वर्ण वाले, शुभ आकृति वाले और बिजली से सहित मेघों को शुभ मेघ माना जाता है। ऐसे मेघ देश में न केवल सुभिक्ष की सूचना देते हैं, अपितु साथ में राज्य में शान्ति, आर्थिक लाभ और रोगों से मुक्ति की सूचना भी देते हैं।
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