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________________ गमौकार पंथ ॐ ह्रीं मह प्रक्षयाय नमः ।।६५०1। प्रापका कभी क्षय नहीं होता इसलिये माप प्रक्षय हैं ॥६५०।। ॐ ह्री अह क्षेमधर्मपतपे नमः ।। ६५१।। सभी जीवों का कल्याण करने वाले जैन धर्म के प्रवर्तक होने से आप क्षेमधर्मपति है ॥६५१५ ॐ ह्रीं आई क्षमिणे नमः ॥६५॥ क्षमावान होने से प्राप क्षमी है ।।५॥ ॐ ह्रीं मह भग्राणाय नमः ।। ६५३॥ इन्द्रियों के द्वारा ग्रहण न होने से अथवा मिथ्यात्वियों के द्वारा ग्रहण न होने से आप अग्राह्य हैं ॥६५३॥ ॐ ह्रीं अर्ह ज्ञान निग्राह्याय नमः ॥६५४।। निश्चय ज्ञान के द्वारा ग्रहण करने योग्य होने से आप शान निग्राह्य हैं ।।६५४|| ॐ ह्रीं अहं ध्यान गम्याय नमः ॥६५५।। आप ध्यान के द्वारा जानने योग्य होने से ध्यानगम्म हैं ।।६५५॥ ॐ ह्रीं महं निरुत्तराय नमः ॥६५६।। पाप सबसे उत्कृष्ट हैं इसलिये निरुत्तर हैं ।। ६५६।। * हीं अहं सुकृतये नमः ॥६५७|| पाप पुण्यवान होने से सुकृती हैं ॥६५७।। ॐ ह्रीं अहं धातवे नमः ।।६५८|| शब्दों की खान होने से पाप धातु हैं ||६५८॥ ॐ ह्रीं अहं इज्याहस्य नमः ॥६५६।। पाप पूजा करने के योग्य होने से इज्याई हैं ।।६५६।। ॐ ह्रीं अहं सुनयाय नमः ॥६६०।। नयों के सम्यक् प्रकार ज्ञाता होने से आप सुनय हैं ॥६६॥ ॐ ह्रीं अहं निवासाय नमः ॥६६१।। लक्ष्मी के निवास स्थान होने से आप श्री निवास हैं ।।६६१॥ ॐ ह्रीं अहं चतुराननाय नमः ॥६६२।। चतुर्वक्रः ॥६६३॥ चतुरास्य १६६४।। चतुर्मूखः ।।६६५॥ एक मुख होकर भी चारों ओर से दर्शन होने से अथवा लोगों को चार मुख दीखने से पाप चतुरानन तथा चतुर्मुख कहलाते हैं ।।६६२, ६६५! __ ॐ ह्रीं अहं सत्यात्मने नमः ॥६६६॥ सत्यस्वरूप होने से अथवा जीवों का कल्याण करने से पाप सत्यात्मा हैं ||६६६॥ ॐ ह्रीं प्रहं सत्यविज्ञानाम नमः ।।६६७|| प्रापका विज्ञान सत्य अथवा सफल होने से प्राप सत्य विज्ञान है ॥६६७॥ ___ॐ ह्रीं ग्रह सत्यवाचे नमः ।।६६८|| मापको वाणी यथार्थ पदार्थों का निरूपण करने वाली है इसलिये पाप सत्यवाक् कहलाते हैं ।।६६८।। . ॐ ह्रीं पह सत्यशासनाय नमः ॥६६६॥ मापका शासन (मत) यथार्थ होने से अथवा सफल मर्यात साक्षात मोक्ष प्राप्त करने वाला होने से ग्राप सत्यशासन हैं | ॐ ह्रीं श्रहं सत्याशीर्षे नमः ।।६७०॥ दोनों लोकों में फलदायक होने से माप सत्याशीर्ष हैं॥६७०।। ॐ ह्रीं अहं सत्यसंधानाय नमः ।।६७१॥ प्रतिज्ञा को दृढ़ रखने से अथवा सत्य स्वरूप रखने से पाप सत्यसंधान हैं 11६७१!! ॐ ह्रीं अई सत्याय नमः ॥६७२।। माप शुद्ध मोक्षस्वरूप होने से सत्य हैं ॥६७२।।
SR No.090292
Book TitleNamokar Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeshbhushan Aacharya
PublisherGajendra Publication Delhi
Publication Year
Total Pages427
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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