________________
|
णमोकार ग्रंथ
ॐ ह्रीं मह महामोहाद्रिसूदनाय नमः || ५४२ || माह रूपी महापर्वतको भेदन करने से प महाद्रि सूदन हैं || ५४२ ॥ ॐ ह्रीं महागुणाकार हैं || ५४३॥
महागुणाकराय नमः || ५४३ || सम्यग्दर्शन आदि श्रनेक गुणों की खान होने से
४७
ॐ ह्रीं श्रीं शांताय नमः || ५४४ ।। कषाय रहित होने से प्राप शान्त हैं ॥१५८४ |
ॐ ह्रीं श्री योगीश्वराय नमः ||५४५ || आप गणधर यदि महा योगियों के स्वामी होने से महा योगीश्वर हैं । । ५४५॥
ॐ ह्रीं श्रहं महाशमिने नमः || १४६ ।। समस्त कर्मों का क्षय करने से अथवा परम सुखी होने से श्राप शमी हैं ।। ५४६ ।।
ॐ ह्रीं यह महाध्यानपतये नमः || ५४७ || परम शुक्लध्यान के स्वामी होने से आप महाध्यान पति है।७
ॐ ह्रीं श्रीं महाध्यान महाधर्माय नमः ||५४८ || अहिंसा धर्म का ध्यान करने से याप ध्यान महाधर्म हैं || ५४८ ||
ॐ ह्रीं श्रीं महाताय नमः || ५४६ || महावतों को धारण करने से आप महाव्रती है ।।५.४६।। ॐ ह्रीं यह महाकर्मारिहाय नमः || ५५० ।। कर्मरूप महाशत्रुओंों को नाम करने में ग्राप महाकर्मा रिहा हैं || ५५० ।।
ॐ ह्रीं ॐ ह्रीं ॐ ह्रीं श्रीं कहलाते हैं ।। ५५३ ।। ॐ ह्रीं
सर्वलेश पहाय नमः || ५५४ || शारीरिक और मानसिक कणों को दूर करने से आप सर्वशाप हैं ।। ५५४ ।।
आत्मज्ञाय नमः ।।५५१ ।। श्रात्मा का स्वरूप जानने से आप आत्मज्ञ है १२५५२२ महादेवाय नमः || ५५२|| समस्त देवों के स्वामी होने से श्राप महादेव है ||५५२ महेशिताय नमः || ५५३ || विलक्षण ऐश्वर्य को धारण करने में ग्राम महंगिता
ॐ ह्रीं अर्हं साधवे नमः || ५५५ || निश्चय रत्नत्रय को सिद्ध करने में आप साथ हैं ।। ५५५ ।। ॐ ह्रीं अहं सर्वदोषापहराय नमः || ५५६ || भव्य जीवों के समस्त दोष दूर करने में आप सर्वदोषापहर हैं || ५५६ ।।
ॐ ह्रीं श्रहं हराय नमः ।। ५५७ ।। अनेक जन्मों में किये हुए पापों का हरण करने से आप हर
।। ५५७।।
ॐ ह्रीं यह असंख्येयाय नमः || ५५८ || आप असंख्य गुणों को धारण करने में असंख्येयाय
योगीश्वर हैं ।। ५६२॥
हैं ।। ५५८६ ।।
ॐ ह्रीं श्रीं प्रमात्मने नमः || ५५६ || प्रमाण रहित शक्ति को धारण करने से या अप्रमेयात्मा हैं ।।५५६||
ॐ ह्रीं ग्रहं शमात्मने नमः ।। ५६० ।। आप परम शांतस्वरूप होने से शमान्मा हैं || ५६० ॥ ॐ ह्रीं प्रशमाकराय नमः || ५६१ ।। आप शांतता की खान होने से प्रशमाकर हैं ॥५६१ ॥
ॐ ह्रीं अहं सर्वयोगीश्वराय नमः || ५६२ || आप समस्त योगियों के ईश्वर होने से सर्व