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णमोकार ग्रंथ
ॐ ह्रीं
हैं । ५०२ ||
ॐ ह्रीं अह महाध्यान्याय नमः ||५०३ ॥
हैं ।। ५०३।।
ॐ ह्रीं श्रीं महादमाय नमः || ५०४ || विषय कषायों का दमन करने से अथवा शक्तिमान होने से आप महादम हैं ॥ ५०४ ॥
ॐ ह्रीं श्रह महाक्षमाय नमः || ५०५ || अतिशय क्षमावान होने से आप महाक्षम हैं । ५०५ ।। ॐ ह्रीं श्रह महाशीलाय नमः || ५०६ ।। पूर्ण ब्रह्मचारी होन से अथवा शील युक्त होने से आप महाशील हैं ।। ५०६ ।। -
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महामोन्याय नमः || ५०२ ॥ श्राप के वचनांलाप पर रहित होने से श्राप महामोनी
शुक्ल ध्यान का ध्यान करने से श्राप महाष्यानी
ॐ ह्रीं ग्रह महायज्ञाय नमः ||५०७ || स्वाभाविक परिणति रूप अग्नि में विभाव परिणति रूप सामग्री को हवन कर अथवा तपश्चरण रूप श्रग्नि में विषयाभिलाषा को हवन कर महायज्ञ करने से अथवा केवलज्ञान रूप महायज्ञ प्राप्त होने से श्राप महायज्ञ कहलाते हैं ||५०७ ||
ॐ ह्रीं ग्रह महामखाय नमः ||५०८ || प्रतिशय पूज्य होने श्राप महामख कहे जाते
महातपतये नमः || ५०६ ॥ पंचमहाव्रतों के स्वामी होने से आप महाव्रतपति कहे
है ॥ ५०८ ||
ॐ ह्रीं जाते हैं ||५०६ ॥
ॐ ह्रीं ग्रह' मह्याय नमः || ५.१० || जगत पूज्य होने से आप मा हैं ।। ५.१० ॥
ॐ ह्रीं श्रीं महाकांतिधराय नमः ॥ १११ ॥ अत्यन्त तेज को धारण करने से आप महाकोतिर
हैं ॥५१॥
ॐ ह्रीं यह अधिपाय नमः ॥ ५१२ ॥ सब जीवों की रक्षा करने से अथवा सबके स्वामी होने से आप अधिप हैं ।। ५१३ ।। ॐ ह्रीं
महामैत्रीमयाय नमः ॥ ५१३|| समस्त जोवों से मंत्रीभाव रखने से आप महा
मैत्रीमय हैं ||५१३|| ॐ ह्रीं श्राप अमेय हैं । ५१४॥
श्रमेयाय नमः || ५१४ || किसी भी परिणाम से गिने अथवा नापे नहीं जाते इसलिए
ॐ ह्रीं
हैं ।। ५१५ ।।
ॐ ह्रीं महोमय हैं ॥ ५१६॥
ॐ ह्रीं
जाते हैं ।। ५१७॥
महाप्रायो नमः || ५१५|| मोक्ष के लिए सब से बड़ा उपाय करने से आप महोपाय
महोमयाय नमः || ५१६ ॥ मंगलमय, ज्ञानमय अथवा तेज स्वरूप होने से प्राप
महाकायकाय नमः ।।५१७ ॥ सब जीवों पर दया करने से भाप कारुणिक कहे
ॐ ह्रीं श्रह मंत्रे नमः || ५१८ ।। सबको जानने से ग्राप मंता है ।। ५१८ ॥
ॐ ह्रीं भह महामंत्राय नमः ॥ ११६ ॥ अनेक मंत्रों के स्वामी होने से आप महामंत्र
हैं । ५१६॥
ॐ ह्री ग्रह महायतये नमः ॥ ५२० ॥ इन्द्रिय निग्रह करने वालों में सबसे श्रेष्ठ होने से आप महायति हैं ।। ५२० ।।